और जब मैंने सखियों को बताया कि गाँव की सीमा पर छितवन की छाँह में खड़े हो कर ममता से मैंने अपने वक्ष में उस छौने का ठण्ढा माथा दुबका कर अपने आँचल से उसके घने घुँघराले बाल पोंछ दिये तो मेरे उस सहज उद्गार पर सखियाँ क्यों कुटिलता से मुसकाने लगीं यह मैं आज तक नहीं समझ पायी!
42.
रोबीला चेहरा, कंधों तक झूलते घुँघराले बाल, राजपूती मूँछें, खादी का चूड़ीदार पायजामा कुर्ता-जवाहरकट पहने माइक पर अपनी जोशीली आवाज में वे दहाड़ते ‘‘ भुला भुल्यौं डाला लगा डाला, भिमल का डाला लगा, दाँवा जूड़ा बटण तै सेलु मिललु, आग जगौण क केड़ा मिलला, मुंड धोण के अठालू मिललु, दुधालि भैंसी तै हरयूँ घास मिललो।
43.
वृषभ-जैसे तुरे पुष्ट कन्धे, गुड़हल के फ़ूल-जैसे लाल गाल, उन गालों पर तेरे कानों के कुण्डलों के पड़नेवाले नीले-से दीप्त-वलय, खड़्ग की धार की तरह सरल और नोकदार नासिका, धनुष के दण्ड की तरह वक्र और सुन्दर भौंहें, कटेरी के फ़ूल-जैसे नीलवर्ण नयन, थाली-जैसा भव्य कपाल, गरदन पर होते हुए कन्धे पर झूलनेवाले, महाराजों के मुकुट के स्वर्ण को भी लजानेवाले तुम्हारे सुनहले घने घुँघराले बाल और रथ के खम्भे-जैसे शरीर के कसे हुए सबल स्नायु-यह समस्त स्वर्गीय वैभव होने के कारण तुम भला किसे अच्छे नहीं लगोगे?”