वादी द्वारा वादपत्र में इस आशय का घोषणात्मक अनुतोष चाहा गया है कि प्रश्नगत सम्पत्ति वक्फ सम्पत्ति नहीं है और इस तथ्य का विनिश्चयन अवर न्यायालय द्वारा नहीं किया जा सकता है क्योंकि वाद धारा 6, 83,89 अधिनियम संख्या 43/1995 से बाधित है।
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औपनिवेशिक विरोध के परिणामस्वरूप 1765 में स्टाम्प अधिनियम को निरस्त कर दिया गया, किन्तु 1766 में घोषणात्मक (डिक्लेरेटरी) अधिनियम के द्वारा संसद ने इस बात पर ज़ोर देना जारी रखा कि उसके पास उपनिवेशों के लिए सब मामलों में कानून बनाने का अधिकार था.
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औपनिवेशिक विरोध के परिणामस्वरूप 1765 में स्टाम्प अधिनियम को निरस्त कर दिया गया, किन्तु 1766 में घोषणात्मक (डिक्लेरेटरी) अधिनियम के द्वारा संसद ने इस बात पर ज़ोर देना जारी रखा कि उसके पास उपनिवेशों के लिए सब मामलों में कानून बनाने का अधिकार था.
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यह भी अवर न्यायालय द्वारा निष्कर्ष दिया गया कि घोषणात्मक डिक्री हेतु वादी द्वारा न्यायशुल्क अदा किया गया है और यह नहीं कहा जा सकता कि वाद अल्प मूल्यांकित है और तद्नुसार वाद बिन्दु संख्या-2 नकारात्मक रूप से प्रतिवादी के विरूद्ध निर्णीत कर दिया।
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तलबिदा पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य व वादपत्र के अवलोकन से यह तथ्य परिलक्षित होता है कि वादी ने प्रश्नगत संपत्ति खेत सं0-5946, 5947,5951,6188,6189, तथा 6190 कुल छः खेत रकवा 8 नाली, 01मुट्ठी की बावत स्थाई निषेधाज्ञा हेतु तथा घोषणात्मक डिक्री के लिए वाद योजित किया है।
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सम्पत्ति है या नहीं, इस तथ्य का घोषणात्मक अनुतोष/निस्तारण चाहा गया है और इसप्रकार अवर न्यायालय यह समझने में विफल रही है कि वसीयत विलेख के रद्द करने के मुकदमें में यह तथ्य सीधे तौर पर अन्तर्ग्रस्त है कि क्या वादग्रस्त सम्पत्ति वक्फ सम्पत्ति नहीं है?
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अतः वादी द्वारा प्रतिवादीगण के विरूद्ध वादी के निर्माण कार्य में कोई व्यवधान उत्पन्न न करने हेतु स्थायी निषेधाज्ञा की डिक्री चाही गई है साथ में इस आषय की घोषणात्मक डिक्री भी चाही गई है कि वादी विवादित भूमि का दाय योग्य अधिकारों वाला व पर्सनल लॉ से शासित अधिकारों वाला मालिक है।
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अपीलार्थी-वादीगण द्वारा विवादित भवन सर्वे नं0 199 / 150 के सन्दर्भ में घोषणात्मक आज्ञप्ति चाही गई है और वाद बिन्दु सं01 के सन्दर्भ में यह निर्णीत किया जा चुका है कि वे वर्तमान में छावनी परिषद लैन्सडाउन के रिकर्ड में दर्ज भोलाराम व जवाहरमल के विधिक वारिसान हैं और उक्त भवन पर काविज भी हैं।
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वादपत्र में दिये गये समस्त तथ्य मुव0 3, 72,220.45 रूपये की वसूली से सम्बन्धित है, जबकि विपक्षी/वादी ने केवल घोषणात्मक डिक्री के लिए केवल 200/-रूपये का न्याय शुल्क अदा किया गया है, जबकि प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से वसूली के वाद हेतु सम्पूर्ण धनराशि, जो वसूल की जानी है, न्यायशुल्क देय होता है।