उनकी इस प्रकार की कविताएँ ' अंजलि ', ' रूपराशि ', ' चित्ररेखा ' और ' चंद्रकिरण ' नाम के संग्रहों के रूप में प्रकाशित हुई हैं।
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महादेवी वर्मा, कृष्णा सोबती, चंद्रकिरण सोनरेक्सा, मन्नू भंडारी से लेकर प्रभा खेतान तक न जाने कितनी ऐसी लेखिकाएं हैं जिनकी रचनाएं इस संघर्ष की अभिव्यक्ति हैं।
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इसके विपरीत चंद्रकिरण रोज दस पंद्रह लोगों का खाना बनाती, चूल्हे पर दाल चढ़ा कर कहानी लिखती रहीं और उस समय की सारी प्रतिष्ठित पत्रिाकाओं में निरंतर छपती भी रहीं।
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चंद्रकिरण सौनरेक्सा की आत्मकथा पिंजरे की मैना का नाम पढ़ कर एकबारगी ऐसा लगता है कि यह एक टिपिकल पुराने फैशन की स्त्राी के दुःखों, संघषोर्ं, आंसुओं का आख्यान होगी।
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पर जैसे जैसे किताब के पन्ने उलटते जाएंगे चंद्रकिरण नाम की बहादुर लड़की / स्त्राी सामने आती है, जिसकी सीधी सादी भाषा में लिखी आपबीती पाठक को सहज ही सम्मोहित कर लेती है।
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घर के सारे कामकाज करते हुए अपने असाधारण अध्यवसाय से चंद्रकिरण जिस तरह साहित्य रत्न, प्रभाकर आदि की परीक्षाएं देती हैं वह उनकी पढ़ने की आकांक्षा व जीवट संघर्ष का प्रतीक है।
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अखिलेश, आजकल, आधुनिक हिंदी साहित्य, आलोचना, कथाचर्चा, कवि, कहानी, केदारनाथ सिंह, चंद्रकिरण सौनेरेक्सा, पत्तों-सा हो हरापन, पहल, फूलों-सा रंग हो जीवन में...
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तेरह वर्ष की उम्र में पहली कहानी छपवाने वाली, सम्पादकों से पारिश्रमिक न भेजने का अनुरोध करने वाली चंद्रकिरण सौनरेक्सा विवाहोपरांत घर की अर्थव्यवस्था के संचालन के लिए लेखन, रेडियो, ट्यूशन सरीखे सारे जतन करती हैं।
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पाल सात्र, देरिदा, एडवर्ड सईद, ओलिवियर टोड, नोम चोमस्की, प्रेमचंद, प्रसाद, निराला, महादेवी, पंत, किशोरीदास वाजपेयी, बच्चन, अज्ञेय, नागार्जुन, त्रिलोचन, शमशेर, शिवमंगल सिंह सुमन, केदारनाथ अग्रवाल, भवानी प्रसाद मिश्र, चंद्रकिरण सौनरिक्शा, अमृत राय, गिरिजा कुमार माथुर,
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पत्राों के द्वारा मैत्राी बना कर, चंद्रकिरण के भाई से कांतिचंद्र का आत्मविश्वास के साथ चंद्रकिरण का हाथ मांगने का साहस उस वक्त तुच्छ पड़ गया जब विवाह में कांतिचंद्र ने झूठ, प्रपंच का सहारा लिया।