पांचो भाईयों ने मिलकर प्लान बनाया … एक भाई का शिष्य काशी नरेश था, उस को बोला की सैन्य लेकर हमारे भाई अलरख पे चढ़ाई करना … ऐसे सभी भाइयों ने अपने शिष्य राजाओं को तैयार किया की हमारे भाई अलरख पे चढ़ाई करो..
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अपने आराध्य देव-भगवान् से मुलाक़ात करना निहायत ही जरूरी हैं, चाहे उसके लिए कितने भी कष्ट (दुर्गम चढ़ाई करना, खतरनाक मोड़ से गुज़रना, खाने को अन्न ना हो लेकिन प्रसाद के लिए पैसा जरूर हो, आदि-आदि) क्यों ना सहने पड़े?? ”
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सियाचिन सैनिकों को ठंड में उनकी सबसे बड़ी दुश्मन हैं, के रूप में कर्नल सुनील प्रभु स्थानीय अखबार “हिंदुस्तान टाइम्स” क्योंकि अधिक उन्नत पदों तक पहुँचने के वैज्ञानिक संभव करने के लिए 5,500 से अधिक पैर बच नहीं है “कहा, ”सैनिकों को 28 दिनों के लिए चढ़ाई करना चाहिए.”
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पेड़ों पर रस्सी लगा कर झूला झूलना, इमली के पेड़ की डरते डरते चढ़ाई करना, टोकरी को तिरछा कर रस्सी के सहारे चिड़िया को पकड़ने की कोशिश करना, हारने या खेल में ना शामिल किए जाने पर टेसुए बहाना, मन का ना होने पर बार बार घर छोड़ने की धमकी दे डालना और ऐसी ही ना जाने कितनी और बातें।
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जैसे अहमदशाह बादशाह के सेनापति असद खाँ के फतहअली पर चढ़ाई करने पर सूरजमल का फतहअली के पक्ष में होकर असद खाँ का ससैन्य नाश करना, मेवाड़, माड़ौगढ़ आदि जीतना, संवत् 1804 में जयपुर की ओर होकर मरहठों को हटाना, 1805 में बादशाही सेनापति सलावतखाँ बख्शी को परास्त करना, संवत् 1806 में शाही वजीर सफदरजंग मंसूर की सेना से मिलकर बंगश पठानों पर चढ़ाई करना, बादशाह से लड़कर दिल्ली लूटना, इत्यादि।