प्राचीन काल में इसके चार और आठ प्रकार तक बताए गए हैं जिन्हें क्रमशः चतुरंगिणी सेना और अष्टांगिक सेना कहा गया है।
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सेना के चार अंग-हस्ती, अश्व, रथ, पदाति माने जाते हैं और जिस सेना में ये चारों हैं, वह चतुरंगिणी कहलाती है।
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महाराज दथरथ राम के साथ चतुरंगिणी सेना और अन्न-धन का कोष भेजने की व्यस्था करना चाहते थे किन्तु राम ने विनयपूर्वक इसे अस्वीकार कर दिया।
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‘‘ अन्य दैत्यों की चतुरंगिणी सेना साथ लेकर चामर भी लड़ने लगा, साठ हजार रथियों के साथ आकर उदग्र नामक महादैत्य ने लोहा लिया।
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“ भगवन, हमारी चतुरंगिणी सेना हर प्रकार के आधुनिक अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित है | शक्तिमान है तथा भली भाँति प्रशिक्षित भी है | ”
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प्राचीनकाल में सेना के चार अंग होते थे जिसे चतुरंगिणी सेना कहा जाता था जिसके चार प्रमुख अंग होते थे-पदातिक, हस्तिसेना, अश्वसेना और रथसेना ।
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रुक्मणी के रथ के भीतर पहुँचते ही दारुक ने रथ को उस ओर दौड़ा दिया जिधर अपनी चतुरंगिणी सेना के साथ बलराम उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे।
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रुक्मणी के रथ के भीतर पहुँचते ही दारुक ने रथ को उस ओर दौड़ा दिया जिधर अपनी चतुरंगिणी सेना के साथ बलराम उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे।
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जब वन यात्रा की सब तैयारियाँ पूरी हो गईं तो भरत, शत्रुघ्न, तीनों माताएँ, मन्त्रीगण, दरबारी आदि चतुरंगिणी सेना के साथ वन की ओर चले।
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पैदल, हाथी, घोडे, रथ की चतुरंगिणी सेना के अलावा, विष्टी (बेगार में पकडे गये बोझ ढोने वाले, नोकारोही, गुप्तचर और देशिक) कर्त्तव्य का उपदेश करने वाले गुरू प्रमुख है।