इसलिये नियमतः उन्हें चिढ़ना ही चाहिये और ये चिढ़न उन्हें मंच पर निकालनी ही चाहिये थी मगर जैसा कि ब्रेख्त का नाटक भी दिखाता है कि उच्च स्तर की मानवीयता ऐसे अपवादों से ही परवान चढ़ती है, क्या करें।
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इसके साथ हीविभिन्न क्रियाएं करते हुए वह निश्चित भावनाएं भी अनुभव करता है, जैसे बाधाएं एवं कठिनाइयां सामने आने पर चिढ़ना, आवश्यकताओं की तुष्टि पर खुश होना, श्रम के लिए उत्साह, थकान, श्रम मेंआनंद पाना, इत्यादि।
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सर्वभाषा व्याकरण के अनुसार कुछ अकर्मक क्रियाएँ ऐसी हैं जो अपने सहज अर्थों में कर्ता के साथ-साथ सहपात्र की आकांक्षा भी करती हैं, जैसे मिलना, लड़ना, झगड़ना, चिपटना, टकराना, डरना, कतराना, चिढ़ना आदि.
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चिढ़ना और चिढ़ाना मानव स्वभाव है किन्तु किसी को चिढ़ाते समय ध्यान रखना आवश्यक है कि हम सीमा में रहें क्योंकि किसी को यदि एक सीमा से अधिक चिढ़ाया जाए तो उसकी चिढ़ उग्र रूप धारण करके क्रोध का रूप धारण कर लेता है।
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वैसे गाली गलौज से इतनी चिढ किसी बनारसी को हो तो आश्चर्य होता है:) उ का है कि जहां-हर हर महादेव के नारे के बाद-भो** के जैसी शब्दावली से बन्द लगता हो वहां गलियउंझ से इतना नहीं चिढ़ना चाहिये।
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क्योंकि बदलाव से, हमें प्राप्त होती है, अनुभव की समृद्धि जो सबको नई पहचान देती है.... नए बदलाव से हमारे इर्द-गिर्द बहुत सी चीजें बदल जाती है, जिन्हें लेकर हमेशा झल्ला जाना, कुढ़ना-चिढ़ना बेबकूफी होती है.... बेबकूफ कहलाना किसे पसंद?
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किन्तु इस समय (यह शायद ‘ ब्राह्म मुहूर्त ' ही होगा-सूर्योदय से पहले, लगभग पौने पाँच बजे) सच ही कह रहा हूँ-यह ‘ कमी देखना ‘ और इस पर चिढ़ना / कुढ़ना, उनकी बेहतरी सोच-सोच कर ही होता है कि काश! यह फलाँ-फलाँ कमी इनमें नहीं होती तो कितना अच्छा होता!
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यह कविता समर्पित है मेरे अज़ीज़ दोस्तों के लिए:) जो हर एक तरह से दोस्त कहलाने के लायक है | उनमें एक अच्छे दोस्त के सभी कीटाणु मौजूद हैं | माता की तरह दुलार, पिताजी की फटकार, बहना की छेड़छाड़, भाई सा चिढ़ना यार, यह समस्त गुण तो कूट कूट कर भरे हैं पर प्रेमिका के जैसा प्यार वो अभी दूर दूर तक नज़र नहीं आ रहा है.....
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पूर्णिमा के चांद में जो धब् बे नजर आते हैं, यदि कोई उसके वैज्ञानिक कारणों में नहीं जाकर मानव के कल् पनाशील एवं गप् पी स् वभाव के कारण चन् द्रमा के किसी पाप का कलंक मान कर कोई कहानी या कविता बनाता है तो वैज्ञानिक को उस कहानी या कविता पर चिढ़ना क् यों चाहिए और उस कहानी या कविता को वैज्ञानिक आधार पर झूठी बताकर अपनी विजय का ढोल क् यों पीटना चाहिए?
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बाल्यावस्था में सामान्य ग्वाल बालों के साथ उसी प्रकार खेलना कूदना, हंसना हंसाना, हारना जीतना, चिढ़ना चिढ़ाना, माखन चोरी करते रंगे हाथ पकड़े जाने पर तरह तरह के बहाने बनाना, अपनी गलती दूसरों पर थोप कर साफ साफ बच निकलना आदि बालक कृष्ण की कतिपय विशिष्टताएं हैं जो उन्हें सामान्य बालकों से थोड़ा अलग करती हैं और इसी के चलते वे साथियों के बीच टोली नायक बन जाते हैं जो लोकनायक बनने का पूर्वाभ्यास जैसा प्रतीत होता है।