(((-एक छोटी सी मख़लूक़ च्यूंटी में यह दूरअन्देषी और इस क़द्र तन्ज़ीम व तरतीब और एक अषरफ़ुल मख़लूक़ात में इस क़द्र ग़फ़लत और तग़ाफ़िल किस क़द्र हैरत अंगेज़ है और उससे ज़्यादा हैरत अंगेज़ क़िस्साए जनाबे सुलेमान है जहां च्यूंटी ने लष्करे सुलेमान को देखकर आवाज़ दी के फ़ौरन अपने अपने सूराख़ों में दाखि़ल हो जाओ के कहीं लष्करे सुलेमान तुम्हें पामाल न कर दे और उसे एहसास भी न हो।
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ज़रा इस च्यूंटी के छोटे से जिस्म और उसकी लतीफ़ “ ाक्ल व सूरत की बारीकी की तरफ़ नज़र करो जिसका गोषाए चष्म से देखना भी मुष्किल है और फ़िक्रों की गिरफ़्त में आना भी दुष्वार है, किस तरह ज़मीन पर रेंगती है और किस तरह अपने रिज़्क़ की तरफ़ लपकती है, दाने को अपने सूराख़ की तरफ़ ले जाती है और फिर वहां मरकज़ पर महफ़ूज़ कर देती है।
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गोया के एक च्यूंटी के दिल में क़ौम का इस क़द्र दर्द है और उसे सरदारे क़ौम होने के एतबार से इस क़द्र ज़िम्मेदारी का एहसास है के क़ौम तबाह न होने पाए और आज आलम इस्लाम व इन्सानियत इस क़द्र तग़ाफ़ुल का षिकार हो गया है के किसी के दिल में क़ौम का दर्द नहीं है बल्कि हक्काम क़ौम के कान्धों पर अपने जनाज़े उठा रहे हैं और उनकी क़ब्रों पर अपने ताजमहल तामीर कर रहे हैं।
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और पाक है वह ख़ुदा जिसने च्यूंटी और मच्छर से ले कर उन से बड़ी मख़्लूक़ मछलियों और हाथियों तक के पैरों को मज़बूत व मुस्तहकम किया है और अपनी ज़ात पर लाज़िम कर लिया है कि कोई पैकर (आकार) कि जिस में उस ने रूह (आत्मा) दाख़िल की है, जुंबिश (कंपन) नही खायेगा मगर यह कि मौत को उसकी वअदागाह और फ़ना (नाश) को उस की हदे आख़िर (अन्तिम सीमा) क़रार देगा।