मैंने और गोपाल शर्मा जी ने बच्चों के झूले में खड़े होकर फोटो खिंचवाई-जो अब तक शर्मा जी ने मुझे अग्रेषित नहीं की है (शायद छपाना न चाहते हों)....
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छपाना एक पुस्तक का ” (भाग-1) धारावाहिक रुप मे लगा रहा हूँ शायद आप लोगों को, विशेषत: जो उदीयमान लेखक है, को पसन्द आए सादर आनन् द.प ाठक 0 94133 95592-
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पहुँचा सकेंगे उसे कहाँ तक? अशिक्षा और गरीबी कितनी मिटी? नेताजी के जुलूस में भीड कितनी जुटी? आँकडे जुटाना और अखबार में छपाना ही सबसे बडा और जरूरी काम है बाकी सब हराम है ।
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बच्चन जी ने अपने तथा पन्त जी के विवाद पर चर्चा करते समय लिखा है कि, 'अगर आपके पास मेरे पत्र पड़े हों और आप उन्हें कभी छपाना चाहें तो मैं कभी आप से नहीं कहूँगा कि पहले मुझे उन्हें सेंसर करने दीजिए।'
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एक व्यंग्य:... छपाना एक पुस्तक का... “ (भाग-1)-प्रिय मित्रो! बहुत दिन बाद इस ब्लाग पर लौटा हूं. सेवा में एक व्यंग्य रचना ”... छपाना एक पुस्तक का... ” (भाग-1) लगा रहा हूँ शायद पसन्द आए.......... * छपाना... कभी कभी यूँ भी....-देश में आजकल माहौल बेहद राजनीतिक हो चला है.
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एक व्यंग्य:... छपाना एक पुस्तक का... “ (भाग-1)-प्रिय मित्रो! बहुत दिन बाद इस ब्लाग पर लौटा हूं. सेवा में एक व्यंग्य रचना ”... छपाना एक पुस्तक का... ” (भाग-1) लगा रहा हूँ शायद पसन्द आए.......... * छपाना... कभी कभी यूँ भी....-देश में आजकल माहौल बेहद राजनीतिक हो चला है.
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एक व्यंग्य:... छपाना एक पुस्तक का... “ (भाग-1)-प्रिय मित्रो! बहुत दिन बाद इस ब्लाग पर लौटा हूं. सेवा में एक व्यंग्य रचना ”... छपाना एक पुस्तक का... ” (भाग-1) लगा रहा हूँ शायद पसन्द आए.......... * छपाना... कभी कभी यूँ भी....-देश में आजकल माहौल बेहद राजनीतिक हो चला है.
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(अल् बहज़ियाहूल मर्जियाह फि शर्हुल अल्फियाह) इस किताब को अस्ल लिख़ने वाला अल्लमा जलाल ऊद्दीन सीयूती, जो तमाम हौज़े और कलेज में दरस वाली किताब के हिसाब से मशहूर है, प्रथम जिल्द में आप कर्बला मुअल्ला 15 शाबान 1386 हिजरी क़मरी में हाशिया लागाएं जो 454 पृष्ठ पर है, और दूसरी जिल्द 444 पृष्ठ का है, यह किताब ज्ञानि और मुनीषी व्यकित्व के दर्मियान मशहूर होने के कारण से कई बार छपाना पढ़ा।
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? मूर्ख, सम्मान के नारीयल की ही चटनी बनाये गा क्या … इत्ती गर्मी है शाल चाहता है, कांच के मोमेंटो चाहिये तुझे इस के लिये हिन्दी मैया की सेवा का नाटक कर रहा था? जानता हूं तुझे आदमी से हट के रुतबा चाहिये उन अखबारों में नाम चाहिये जिसको रद्दी-पेप्पोर बाला पुडे बनाने बेच आता है, या कोई बच्चे की ……………. साफ़ करने में काम आता है उसमें फ़ोटो छपाना है..
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ज बसे यह सूचना मिली है कि पलामू में कुछ लोग उनके व्यक्तित्व-कृतित्व को रेखांकित करने के लिए कोई ग्रंथ छपाना चाहते हैं और इसमें मुझसे भी कुछ रचनात्मक योगदान की अपेक्षा की जा रही है, जितना ही प्रसन्न हूं उससे कहीं अधिक परेशान कि उन पर लिखना कहां से शुरू करूं, क्या-क्या लिखूं! मेरे पास उनसे संपर्क के कुछ ही सालों की किंतु ढेरों स्मृतियां हैं! सबसे पहली बात तो यही कि जिन दिनों मेरे मन में साहित्य-प्रेम के मेघ-खंड तैयार हो रहे थे, मैं हरिवंश प्रभात के साथ परिचित हो गया था।