डाइनिंग स्पे स.... पर्यटकों को जंगल का अहसास दिलाने के लिये पूरा रिसोर्ट ही घने जंगल जैसा था, लेकिन ये स्पेस तो केवल आधी-आधी दीवारों से ही घिरा था.
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चलते हैं जो सत्य के पथ पर अपने घर में भी वह पराये हो जाते शहर भी जंगल जैसा अहसास कराये जाते आदर्शों की बात जमाने से वही करते जो कहने के बाद उसे भुलाये जाते
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पर्यटकों के रुकने की जगह को भी जंगल का अहसास दिलाने के लिये पूरे रिसॉर्ट को ही घने जंगल जैसा माहौल दे दिया गया था, लेकिन डाइनिंग स्पेस तो केवल आधे दीवारों से ही घिरा था।
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उस समय के सत्याग्रह-आश्रम में और आज के हरिजन-आश्रम में काफ़ी अन्तर है-बाहरी दर्शन में और वातावरण में भी. आज की अपेक्षा उस समय का आश्रम बाहर अधिक छोटा और जंगल जैसा था.
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उस समय के सत्याग्रह-आश्रम में और आज के हरिजन-आश्रम में काफ़ी अन्तर है-बाहरी दर्शन में और वातावरण में भी. आज की अपेक्षा उस समय का आश्रम बाहर अधिक छोटा और जंगल जैसा था.
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अनुराधा जी, हम सरिता जी से सहमत हैं, क्योंकि, पहले जब हम बच्चे थे, तो हमें भी रोकटोक का सामना करना पड़ता था, और अगर ये रोकटोक ना हो तो, बच्चे का भविष्य क्या होगा? शायद आपको नहीं पता? अगर आपके हिसाब से चलें तो, जंगल में भी पशु-परिंदे झुण्ड में रहते हैं, वहां अकेला होने का मतलब है, मौत, और देखा जाये तो अपना समाज भी कुछ-कुछ जंगल जैसा ही है, कभी अकेले रह के देखिये, फिर पता चलेगा …..