मैं चोरों की तरह हरिया हकले का ज़ीना चढ़कर ढाबू की छत फलांगता अपनी छत के क्रिकेट मैदान वाले हिस्से की तरफ़ आ कर टंकी की ओट हो गया.
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मैं चोरों की तरह हरिया हकले का ज़ीना चढ़कर ढाबू की छत फलांगता अपनी छत के क्रिकेट मैदान वाले हिस्से की तरफ़ आ कर टंकी की ओट हो गया.
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और कहां है हमारे विशाल घर की विशालता कहां है उसका सुकून कहां है खिलते हुए फूलों की गुदगुदी से हंसता हुआ वह घुमावदार ज़ीना और मेरा बचपन कहां है.
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मैं चोरों की तरह हरिया हकले का ज़ीना चढ़कर ढाबू की छत फलांगता अपनी छत के क्रिकेट मैदान वाले हिस्से की तरफ़ आ कर टंकी की ओट हो गया.
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और कहां है हमारे विशाल घर की विशालता कहां है उसका सुकून कहां है खिलते हुए फूलों की गुदगुदी से हंसता हुआ वह घुमावदार ज़ीना और मेरा बचपन कहां है.
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न उसकी चाल में वह मटक बची थी न शरारतों में उसकी कोई दिलचस्पी. अड्डू का पीछा करते दौड़ते हुए भी चोर निगाह से मैंने उसे हरिया हकले का ज़ीना चढ़ते हुए देख लिया.
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घाटी में एक जली हुई इमारत का ज़ीना इस तरह शून्य की तरफ़ झाँक रहा था जैसे सारे विश्व को आत्महत्या की प्रेरणा और अपने ऊपर आकर कूद जाने का निमन्त्रण दे रहा हो।
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एक दिन देर शाम को सियार की सी आवाज़ निकालते हुए लफ़त्तू ले घर के बाहर “ बी... यो... ओ... ओ... ई ” का लफ़ाड़ी-संकेत किया तो डरते-सहमते मैं ज़ीना उतर कर बाहर निकला.
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:)) ये हैं ज़ीना बरुआ, उमाकांत खुबलकर,डॉ सुधा श्रीवास्तव,हरकीरत 'हीर'और चन्द्रप्रकाश पोद्दार कैसी लगी.....:)) अमृता के जन्म दिन पर....... आ ज अमृता का जन्मदिन है...वह अमृता जिसकी आत्मा का इक-इक अक्षर हीर के ज़िस्म में मुस्कुराता है...जिसकी इक-इक सतर हीर की तन्हा रातों में संग रही है...
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जिन् दगी हर कदम पर ज़ीना सिखाती है, दुख हो, दर्द हो, धूप हो या फिर हो नितान् त अकेलापन वो धड़कनों में जीवन का संगीत लिए अपनी लय में कदम से कदम मिला जब थिरक़ती है तो सब कुछ दृष्टिगोचर हो मनभावन हो जाता है क् योंकि तब हम फ़र्क समझ चुके होते हैं अच् छे और बुरे का...