लिखते हैं कि बहुत पहले वैज्ञानिकों ने पृथ्वी पर पाए जाने वाले जीवों को जीन सम्बन्ध के आधार पर एक जीवन वृक्ष के रूप में प्रदर्शित किया था जिसमें जिसका चित्र कुछ यूँ था..
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चार्ल्स डार्विन का विश्वास था कि समय के साथ जीवों का अधिक विकसित अवस्था को प्राप्त करने (फिलोजेनी) के प्राकृतिक प्रक्रिया को एक रूपक के रूप में जीवन वृक्ष (Tree of Life) द्वारा दर्शाया जा सकता है।
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सिदीसय्यदमस्जिद अपने बारीकी से नक्काशी की हुई अर्धवृताकार दस पत्थर की खिड़कियों के लिये प्रसिद्ध है, इनमें से एक पर जीवन वृक्ष के चित्रांकन में जटिल रूप से गूँथी हुई एक पेड़ की शाखाओं को दिखाया गया है।
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और मैदान के बाहर लगे सभी वृक्ष काफी मनोहर लग रहे थे, और भोजन के लिए भी अच्छे थे ; बगीचे के बीच में जीवन वृक्ष और अच्छे और बुरे ज्ञान वृक्ष भी थे. [...]
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दिलों में उफनती नफरत, आंखों में तैरता डर घुट घुट कर जीवन वृक्ष रहा है मर गांव में सूखा पड़ा है कुंआ किसे है परवाह कि यहां तो जिस्मों से उठ रहा है धुंआ खून से सने चेहरों पर नाचती वो बेशर्म हंसी परिचितों में भी महसूस होती अपनों की कमीट नम पलकों से टपकटी रात गहराती चली जाती है भरी महफिल में मनहूस तन्हाई काटने चली आती है