तब हमारी मेताबोलिज्म्म गडबडा जाती है, जैव घडी कहती है हमारे शरीर से भाई सोना है, हम खाना खा रहें होतें हैं, ऐसे में जैव घडी केलोरी ठीक से खर्च नहीं कर पाती ।
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निद्रा के चक्रों (स्लीप साइकिल्स), हार्मोन स्राव (इंडो-क्रा-इन सिस्टम), बॉडी टेम्प्रेचर, अन्य अनेक शारीरिक (शरीर क्रियात्मक) प्रक्रियाओं को हमारी कुदरती जैव घडी (सर्कादियंन रिदम, बायोलोजिकल क्लोक) असर ग्रस्त करती है ।
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जोन्स न्यूजर्सी में ट्रक ड्राइवरी करतें हैं. काम के घंटे होतें हैं रात आठ से प्रात:चार बजे तक.जोन्स प्रात:जब भी सोने की कोशिश करतें हैं चार घंटा ही ले देके सो पातें हैं.सूरज का चढ़ना (चिड़ियों का चहचहाना न भी हो)उनकी जैव घडी पहचानती है. दिन की आहट.सूरज का चढ़ना,उतरना.
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केलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, बर्कली कैम्पसके मनोविज्ञान विभाग में सहायक प्रोफ़ेसर लंके क्रिएग्स्फ़ेल्द इसे हमारे बोध सम्बन्धी व्यवहार, सीखने की क्षमता आदि पर (कोगनिटिव बिहेवियर) दीर्घावधि प्रभाव डालने वाला बतलातें हैं फिर वह चाहें रात की पाली में काम करने वाले मेडिकल रेज़ीडेंट हों या फ्लाईट अटेंडेंट हमारी जैव घडी का (सर्कादियाँ रिदम) का गाहे-बगाहे डिस-रप्त होना अपने दीर्घावधि असर छोड़ता है ।