और, चूंकि अंग्रेजी की गाली भी सभ्य सी दिखती है और, हिंदी में थोड़ा जोर से बोलना भी असभ्यता तो, ये तो पूरे समाज के अध्ययन की जरूरत मांगता है उसमें गन्ना किसानों की आंदोलन की खबर के दिन वाले अखबार एक आधार का काम कर सकते हैं।
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आप देखिये पूरे देश के राजनेता एक ही ढंग से बोलते हैं, भाषा और भंगिमाएं अलग हो सकती हैं लेकिन टोन एक सा ही होता है, इसके बरक्स महात्मा गाँधी हैं, जिन्हें जोर से बोलना ही नहीं आता था, ऐसे बोलते थे जैसे आपसे बात कर रहें हो.
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श्रवण शक्ति कमजोर हो चुकने के बाद बुजुर्ग पिता का जोर से बोलना आपकी चिढ़ का कारण बन जाता है लेकिन उस समय आप ये भूल जाते हैं कि ये वही पिता हैं, जो बुखार आने पर रात-रातभर आपके सिरहाने बैठे रहे थे या आपके एक महंगे खिलौने की मांग पर जिन्होंने अपने वेतन से अग्रिम लिया था।