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ज्योति पुंज उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
41. (अर्थ-हे सकल विश्व के उत्त्पत्ति करता, हे ज्योति पुंज शुद्ध ऐश्वर्य स्वरुप, सुखों के दाता स्वरुप परमेश्वर आप मेरे सम्पूर्ण दोष दुर्गुण को दूर कर दीजिये ”) ।

42.खूबसूरत शाम, वीर जवानों की याद में प्रज्वल्लित ज्योति पुंज, अपने एश्वर्य और अभिमान से खड़ा इंडिया गेट, रंगीन बत्तियां, खिलखिलाते चेहरे, प्रेम में डूबे हाथ थामे जोड़े...

43.यह भ्रम है कि वे अब गुमनामी के अंधेरों में खो जायेंगे अभी वे ज्योति पुंज थे ज्ञानदीप थे अब वे ध्रुवतारा हो जायेंगे हर दिशाभ्रमित नाविक को रास्ता दिखायेंगे हर डगमगाते कदम को फिसलने से बचायेंगे

44.कहता है: विचार के लिये जरूरी है कि वह प्रत्येक तर्क और तथाकथित ‘अच्छाई' से दूर रहे, हर मानवीय मुसीबत से परे, कुछ इस तरह कि चीजें बिलकुल अलग ही प्रतीत हों, मानो किसी ज्योति पुंज से प्रकाशित हो वे पहली दफा दिख रही हों.

45.चक्षुपट खुला प्रकट हुयी प्रदाह सिक्त ज्यों प्रभा समुज्ज्वला असंख्य ज्योति पुंज संग नाचती हो चंचला पड़ी जो दृष्टि आम्र वृक्ष पर छुपे मनोज पे हुए तुंरत भस्म कामदेव शिव प्रकोप से जगे महेश देख देव नाद हर्ष से किये जगत हिताय कामदेव देह त्याग कर दिये

46.वाइलेंस के लिए एक सभ्य समाज में कोई जगह नहीं होनी चाहिए आत्म संयम से बड़ा कोई डिस्पिलिन नहीं है ये कुछ ऐसे जीवन मूल्य हैं जो गाँधी जी हमारे लिए छोड़ गए हैं ताकि जब कभी हयूमनिटी खतरे में हो ये ज्योति पुंज उसकी मदद करें.

47.आमतौर पर कवि कल्पना लोक में विचरते हुए अपनी भावनाओं की सौंदर्यमय अभिव्यक्ति की कोशिश करता है, मगर विमल जी ने अपने अंतर्मन की पीड़ा को छिपाकर समाज के यथार्थ को प्रस्तुत करने, ज्योति पुंज प्रज्ज्वलित करने और क्रांति की चेतना फैलाने की भरपूर सार्थक कोशिश की है ।

48.सत्य की राह पर राही बढता गया सूर्य सत्कर्म का नित्य उगता गया थे नहीं खोंखले वादे इरादे, फौलादी मंसूबो ने फासला तय किया, ढेरो थी मुसीबते वे हसते रहे षड़यंत्र के चक्र व्यूह वे रचते रहे दीप निर्विकल्प का ज्योति पुंज ले नया शुभ संकल्प का दीप्त पथ कर गया

49.‘ प्रवाह युक्त तेज पुंज ' रूप सूर्य से उत्पन्न और पृथक होने वाली ‘ ज्योति पुंज ' अथवा ‘ तेज-पुंज ' रूप पृथ्वी भ्रमण करते हुये किस प्रकार ‘ तेज-पुंज ' ही ठोस रूप ‘ पिण्ड ' का रूप ले लेती है अथवा पिण्ड रूप में परिवर्तित हो जाती है, अब यह जानना-देखना और समझना है।

50.बातें, बातों और बातों के पीछे खूबसूरत मंज़र भटकते हैं खामोश से, बंद किवाड़ के पीछे ठाकुर जी से रहते हैं, हर दिन नए जंगल बनते हैं, दरदरे जंगल में चीड़ के पेड़ धूप छाँव का खेल खेलते हैं रेशम के तार जब सिरा ढूँढते हैं मन से उलझ जाते हैं शाख पर तब बहुत से ज्योति पुंज नज़र आते हैं

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