हमारे लिए सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या किसी साहित्यकार की रचनाओं में उसके समय की झाँई नज़र आती है, भले ही अशोक जी यह मानते हों कि बड़ा लेखक हमें नितान्त समसामयिकता की जकड़बन्दी से मुक्त करता है।
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परदेसी पाती के अक्षर में पाने को घिरते हैं अर्थ कई नयनों में बावरे दोपहरी ग्रीषम की राहों में टक बांधे बंजारे मन के सब खोले है घाव रे अंखियों में पड़ आई झाँई की टीस लिखो और पढो गीले नयन.
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किससे बोलता झूठ और किससे चुराता मुँह किसकी करता मुँहदेखी किसके आगे हाँकता शेखी हर तरफ़ अपना ही तो चेहरा था नावे तों बहुत थी नदारद थी तो बस नदी चेहरों पर थी दुखों की झाँई जिसे समय ने रगड-रगड़ कर और चमका दिया था
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मीरा ने हरि को मोल लिया या हरि ने मीरा को मोल लिया यह कौन तय करेगा? किन्तु इतना सत्य है कि मीरा, अक्का, अंदाल या ललद्येद को यह कहने की जरुरत महसूस नहीं हुई कि पुरुष की झाँई पड़ते भुजंग अंधा हो जाता है या पुरुष नरक के द्वार या मीनार हैं ।
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और उधर पुराना चित्रकार जो बहुत छोटे पैमाने पर काम करता था उसी में अधिक-से-अधिक ब्यौरा दे देता था-पेड़ हो तो एक-एक पत्ती, पत्ती का एक-एक रेशा, शबीह हो तो चेहरे की एक-एक झाँई, एक-एक सलवट, लट का एक-एक बाल, दुपट्टे-घघरे की गोट के एक-एक तारक-फूल की एक-एक पंखुरी...
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मीरा ने हरि को मोल लिया या हरि ने मीरा को मोल लिया यह कौन तय करेगा? किन्तु इतना सत्य है कि मीरा, अक्का, अंदाल या ललद्येद को यह कहने की जरुरत महसूस नहीं हुई कि पुरुष की झाँई पड़ते भुजंग अंधा हो जाता है या पुरुष नरक के द्वार या मीनार हैं ।
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10 ग्राम मसूर की दाल, 10 ग्राम हल्दी और 10 ग्राम बेसन को रात में 60 मि. ली. कच्चे दूध में भिगो दें | प्रातः काल इन सब को पीसकर उबटन की भांति लगाने के पश्चात स्नान करें | इस प्रयोग से मुंहासे, चेचक के दाग, स्त्रियों के चेहरे के अनावश्यक बाल, झाँई आदि नष्ट हो जाते हैं |