जब कभी भी पोस्ट पढ़ता हूँ तो यह सत्य है कि यदि विषय पहचाना सा लगता है तो तुरन्त टिप्पणी लिखना प्रारम्भ करता हूँ ।
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बनाया है), फ़िर चिट्ठा पढना (क्योंकि पढने का शौक है), फ़िर टिप्प्णी पढना और फ़िर टिप्पणी लिखना (अब ये आखिर में क्यूं सब समझते होंगे)..
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4. यदि आप प्रत्येक खण्ड के साथ अलग-अलग टिप्पणी लिखने की बजाय माह / अंक की सम्पूर्ण सामग्री पर एक ही टिप्पणी लिखना चाहते हैं, तो ‘
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पोस्ट लिखना तो सिखा दिया अब टिप्पणी लिखना भी सिखा ही दीजिएक्या हमेशारोचक पोस्टअद्भुत वर्णनबढ़िया विवरणआपका आभारअच्छा लगा पढ़ करकभी मेरे ब्लॉग पर भी आईएबहुत अच्ची जानकारीआपका आभारजैसा लिखते रहें!
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मेरी नज़र में टिप्पणी लिखना, करना नहीं कहूंगा क्योंकि मैं तो लिखता हूं उन्हें भी....पोस्ट लिखने से बेहतर कला है........मगर शर्त यही कि कला जैसी ही दिखे ।
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अतः जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करके टिप्पणी लिखना (अगर यह स्वस्थ मंशा से है) एक जातिविहीन समाज बनने की दिशा में चालित है तो शर्म की बात बिलकुल नहीं है.
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हिन्दी पत्राचार, हिन्दी टिप्पणी लिखना, हिन्दी में बातचीत करना, कार्यालय प्रमुख द्वारा कोयंबत्तूर टोलिक बैठक में इरूगूर इन्स्टलेशन के कार्यालय प्रमुख के साथ भाग लेना अत्यंत सराहनीय बात है ।
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अब हमें सत्तर वर्ष में आई है:) इस पर भी कभी टिप्पणी लिखना चाहे तो बक्सा बंद कर दिया जाता है-उसी कहावत की तरह-An early bird catches the moth:)
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दरअसल मेरे लिए टिप्पणी लिखना सिर्फ़ संवाद का ज़रिया नही हैं, इससे मुझे लगता हैं मैने किसी एसी पोस्ट पर जिसने मेरे दिल को छू लिया हो,के लिए अपना पाठकिय धर्म अदा किया हैं.
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लीजिये जनाब अब आपका ब्लॉगर की पोस्ट को ध्यान से पढना (सौजन्यता को तो मारिये गोली), फिर ध्यान केन्द्रित करके टिप्पणी लिखना, विचार, शब्द चयन, वाक्य विन्यास सब गया काम से....