| 41. | बार-बार के मुड़ते, भेड़ न बैकुण्ठ जाय ॥ 220 ॥ माया तो ठगनी बनी, ठगत फिरे सब देश ।
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| 42. | नार्मदेय-ब्राहमण-समाज नर्मदा के किनारे बसे ब्राहमण हैं जिनका धर्म सदाचार ही है वरना सभी जानते है मया महा ठगनी हम जानी ”
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| 43. | जा ठग ने ठगनी ठगो, ता ठग को आदेश ॥ 221 ॥ भज दीना कहूँ और ही, तन साधुन के संग ।
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| 44. | |ले हाथ में छेनी तूहर विनाश का विकल्प होमाया ठगनी के कुरूप भंवर कासुन्दर शिल्प में विलय होमोक्ष का उदय हो " सुविचार-शुभकामनाएं
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| 45. | ठगनी बोली, ” पुत्री तू उस समय बहुत छोटी थी, जब हम दोनों तीर्थ करने के लिए चली गयी थी ।
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| 46. | जल में कुम्भ, कुम्भ में जल है, बाहर भीतर पानी फूटा कुम्भ जल जलहीं समाना, यह तथ कथौ गियानी।” माया महा ठगनी हम जानी।।
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| 47. | भक्तों को भी ठगनी ही लुभा रही थी इसलिए मांग और पूर्ति के सिद्धांत का पालन करते हुए उसी की आपूर्ति हुई जिसकी मांग थी।
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| 48. | और माया का तो पता ही है आपको “” माया महां ठगनी हम जानी “” दूसरी बात अगर मैं कहूं की फलां जगह मैं “
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| 49. | “बिल भर देना” निर्लज्ज! और नहीं, तो ये ज़रूर कोई ठगनी होगी, जो बेखबर गंजे लोगों पे उलटी कर के भोले और मासूम यात्रियों को फंसाती होगी...
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| 50. | मंगल हो सुमंगल हो, सृष्टि का सृजन हो |ले हाथ में छेनी तू हर विनाश का विकल्प हो माया ठगनी के कुरूप भंवर का सुन्दर शिल्प में विलय होमोक्ष का उदय हो ||
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