जिस प्रकार केकड़े का स्वभाव डंक मारना होता है, पेड़ का स्वभाव पत्थर की चोट सहकर भी फल देना होता है, उसी प्रकार यह स्वभाव हर जाति, मज़हब के इंसानों में होता है लेकिन हिन्दुओं में यह भावना कूट-कूटकर भरी हुई है जिससे कभी वह विमुख नहीं होते।
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जिस प्रकार केकड़े का स्वभाव डंक मारना होता है, पेड़ का स्वभाव पत्थर की चोट सहकर भी फल देना होता है, उसी प्रकार यह स्वभाव हर जाति, मज़हब के इंसानों में होता है लेकिन हिन्दुओं में यह भावना कूट-कूटकर भरी हुई है जिससे कभी वह विमुख नहीं होते।
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पास से गुजरते एक राहगीर ने साधू महाराज से पूछा कि महाराज वो कीड़ा बार-बार आपको डंक मार रहा है, आप फिर भी उसे बचाने की व्यर्थ कोषिष क्यूं कर रहे हो? साधू महाराज ने बड़ी ही नम्रतापूर्वक कहा, उस कीड़े का स्वभाव है डंक मारना और मेरा स्वभाव है, जीवन बचाना।
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हमने भी शिक्षा ले ली, साधू और बिच्छु की कहानी से.हम भी डंक मारना सीख रहे हैं पर....आप जैसा कोई डूबने से बचाने वाला मिले तो...........वरना ऊ तो हमे पत्थर से कुछल ही देगा न? हा हा हा जियो और....यूँ ही 'मोटिवेट' करते रहो.जिंदगी बीत जायेगी और शायद 'उस' साधू का कुछ अंश गुण हम में भी आ जाये.
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हर इलाके में ऐसे कई बड़े-बड़े लोग होते हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि इनका व्यवहार श्वानों से भी बदतर है, जो इनके पास जाता है उसे काटने के लिए दौड़ते हुए लगते हैं, साँपों की तरह फुफकारना, बि ' छू की तरह डंक मारना और जहर उगलना इनका स्वभाव ही बन गया है, कभी दुलत्ती झाड़ते हैं, कभी सिंग मारते हैं।