चूंकि गुजरात के अंदर दलितों का एक हिस्सा मोदी के अल्पसंख्यक-विरोधी हिंदुत्व-एजेंडे का ढिंढोरची बना हुआ है, इसलिए वहां पर इसकी कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई, मगर जब तमिलनाडु में यह समाचार छपा तो वहां दलितों ने इस बात के खिलाफ उग्र प्रदर्शन कि ए. उन्होंने मैला ढोने को ‘ आध्यात्मिक अनुभव ' की संज्ञा दिए जाने को मानवद्रोही वक्तव्य कहा.
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' दो शब्द' में प्रेमपाल शर्मा लिखते हैं, 'जिस शिक्षा का चेहरा ऐसा क्रूर हो कि बच्चे और नौजवान आत्महत्या करने को मजबूर होंऋ जो आपके चेहरे, विचारों को और सांप्रदायिक, जातिवादी, कूपमंडूक बनाएऋ जो प्रतिभा के नाम पर सिपर्फ रट्टू, नकलची, ढिंढोरची नागरिक बनाए, उसे आज और अभी बदलने की जरूरत है और यह तभी संभव है जब हम और हमारे बच्चे हँसते-खेलते पढ़ने के आनंद में शामिल हों।' यह पूरी किताब का सारांश है।