कम से कम मुझे! सद्ग्रंथों के लुप्त होने की मार विश्वविद्यालय जीवन में मैं स्वयं झेल चुका हूँ!!! आपका पोस्ट पढ़ कर वर्षों से ' कराल तकनीकी व्यवस्था के कोहरे से कुम्हला रहा हृदय पुष्प ' सहस पल्लवित हो गया!!! कोटि-कोटि आभार!!! काश यह पोस् ट.......... स्नातक की कक्षाओं में मिल जाता......... काव्यशास्त्र के छठे पत्र में मेरे अंक ८ ९ ही नहीं होते..........! कभी-कभी स्वीकार करना पड़ता है, “ समय से पूर्व और भाग्य से अधिक नहीं मिलता!!! ” एक बार फिर से धन्यवाद!!!!