यूपीवाले खा रहे थे तो बंगालवाले भी, नॉर्थईस्टवाले भी,मध्यप्रदेशवाले भी ।ऎसी राष्ट्रीय एकता तो मैंने पहले कभी नहीं देखी.इससे तो लगता है भेंजी ये गरीब का कितना ख़्याल रखते हैं, बेचारे को दाल-रोटी-चावल खाने की तकलीफ देना भी नहीं चाहते ।
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इस लोकतंत्र में आम लोगों से चुने लोग नीचे से ऊपर तक शासन कर रहे है और अगर कोई समस्या है तो जितना वह जिम्मेदार हैं उतना ही उन्हें चुनने वाले भी हैं तो फिर दुसरे लोगों को इसके लिए तकलीफ देना उचित कैसे कहा जा सकता है ।
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इस देश में लोकतंत्र है और अपनी मांगों के समर्थन में आन्दोलन करने का सभी लोगों को हक है पर उससे ऐसे लोगों को तकलीफ देना कहॉ तक जायज है जो न तो मांगों के बारे में जानते हैं न उनको पूरी करने या न करने के लिए उनके पास कोई शक्ति है न अधिकार।
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“ तो वही आप भी हमारी परेसानी समझिये न, हम लोग भी एक दो घंटा का रास्ता होता तो खड़े-खड़ चल चलते लेकिन अब चौबीस घंटा अपाढ़ हो जाता है, अब देखिये उहां बाथरूम के पास कुछ लोग हैं लइका बच्चा लेके, चाहते तो हम भी उहां बइठ सकते थे लेकिन जो पहले से तकलीफ में है उसे और तकलीफ देना ठीक नहीं न है ” ।
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हम कभी भी अकेले नही होते हमारे साथ जन समूहँ होता है हम वो हे जो जनता मै होते है पर जनता हमे अच्छा समझने की भूल करती है 11जब जनता हमे समझ पाती है तब तक हम अपना कर जाते है 11 हमारा काम ही तकलीफ देना हैऔर जनता तकलीफ से हमारी शक्ति बडती है 11कभी न कभी समाज के हर वर्ग को हमारी अवशयकता पड ही जाती है 11हमारे कई नाम हैपर भय से जनता कहती है शेतान का नाम लिया शेतान हजिर 11