| 41. | स तदा क्रियते सेतुर्वानरैर्घोरकर्मभि: ।।
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| 42. | तदा प्रलपति सभाध्यक्षः क्रुद्धं भूत्वा मुहुर्मुहुः।
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| 43. | दण्डात् प्रतिभयं भूयः शान्तिरुत्पद्यते तदा, नोद्विग्नश्चरते धर्मं नोद्विग्नश्चरते क्रियाम्।
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| 44. | स्वाकारणा-ज्ञाने वटकनिकायामिव वृक्षों तदा वर्तते तदा
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| 45. | स्वाकारणा-ज्ञाने वटकनिकायामिव वृक्षों तदा वर्तते तदा
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| 46. | तदा हि यायादहितानि कुर्वन्यरस्य या कर्षणपीडनानि।
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| 47. | यत्तु तद्भवता प्रोक्तं तदा केशव सौहृदात्।
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| 48. | तदा त्वेचाल्पिकां पीर्डा तदा सन्धि समाश्चयेत्।।
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| 49. | तदा त्वेचाल्पिकां पीर्डा तदा सन्धि समाश्चयेत्।।
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| 50. | तदा नै सर्ववर्णानां लग्ने गोधूलिक शुभम्।।
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