महादेव दिन भर का भूखा-प्यासा, थका-माँदा, रह-रह कर झपकियाँ ले लेता था ; किन्तु एक क्षण में फिर चौंक कर आँखें खोल देता और उस विस्तृत अंधकार में उसकी आवाज़ सुनायी देती-' सत्त गुरुदत्त शिवदत्त दाता ' ।
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थका-माँदा नायक पश्चिम से लौटेगा तो वह पतिव्रता कहेगी कि ‘ दक्षिण फूले कास पिया ' और दक्षिण से छुट्टी मिलेगी तो इठलाकर और नयन मटकाकर शेष दिशा के बारे में वह सूचित करेगी-‘ उत्तर हिलती घास पिया ' ।
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अभी-अभी आया हूँ दुनिया से थका-माँदा अपने हिस्से की पूरी सजा काट कर... “ स्वर्ग की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए जिज्ञासु ने पूछा-” मेरी याचिकाओं में तो नरक से सीधे मुक्तिधाम की याचना थी, फिर बीच में यह स्वर्ग-वर्ग कैसा? ”
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कहानी का अंतिम हिस्सा यानी पिता के द्वारा दिया गया यह उत्तर कि मैं अपनी ठंड से बचने के लिए रजाई नहीं ओढ़ता हूँ, बल्कि थका-माँदा बेटा जब घर आए तो उसे ठंडी रजाई नहीं, वरन गर्म रजाई ओढ़ने को मिले, यह सोचकर रजाई ओढ़ता हूँ।
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जब अंतिम बार जेलखाने में बंदी मियाद पूरी करने के बाद थका-माँदा मन तथा शरीर से क्लिष्ट और क्लांत हो कर मैं बाहर आया, तब एक-एक करके उन स्नेही जनों की स्मृतियाँ मेरे मन में उदित हो-हो कर व्यक्त होने लगीं, जिनकी मैं सदा अवज्ञा करता आया था।
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दिन समेटकर उतरता है थका-माँदा बूढ़ा सूरज पहाड़ के पीछे अपने साथ वन-प्रांतरों की निःशेष होती गाथाएँ लिये तमतमायी उसके आँखों की ललाई पसर जाती है जंगलों से गुम हो रही हरियाली तक मृतप्राय नदियों में फैल रहे रेतीले दयार तक विलुप्त हो रहे पंछियों के उजड़ रहे अंतिम नीड़ तक।
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शाम को राजपाट का कार्य निपटा कर हिरण्यकश्यपु जब थका-माँदा लौटा और एकाँत में आराम करने के लिए लेटा तब नृसिंह बघनखा लेकर अचानक उसे दबा कर बैठ गया और पेट फाड़ कर उसे मार डाला और स्वयं द्विजों सहित दिन-रात भागता ही चला गया और अपने प्रदेश में पहुँच गया.
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उस, सुबह का इंतजार मुझे हर रात के बाद होता है लेकिन, सूरज मेरे लिये उगता ही है बोझिल / थका-माँदा जैसे रात ने उसे उछालकर फेंक दिया हो क्षितिज से आसमान की ऊँचाईयों पर और वो मेरे कंधों पे अपना सिर रखकर सो जाता है मैं अपनी पीठ पर पालने लगता हुँ घमौरियाँ अपनी सुबह का इंतजार करते-मुकेश कुमार तिवारी दिनाँक: 0 7-मई-2011 / समय: 12: 27 रात्रि / घर