पाठकगण कृपया एक बार फ़िर से दोहरा लें इसलिये निम्नांकित तालिका दे रहा हूँ-क् ख् ग् घ् ङ्-कण्ठ्य च् छ् ज् झ् ञ्-तालव्य ट् ठ् ड् ढ् ण्-मूर्धन्य त् थ् द् ध् न्-दन्त्य प् फ् ब् भ् म्-ओष्ठ्य
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त् थ् द् ध् न् ये सभी दन्त्य उच्चार हैं, यह तो पता है, लेकिन इसे इसी क्रम से क्यों लिया गया? थ्, त्, ध्, द्, न् अथवा थ्, ध्, न्, त्, द् इस क्रम से क्यों नहीं लिया गया? ये प्रश्न उठना स्वाभाविक है।
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अब तक हम काफ़ी परिभाषायें देख चुके हैं जैसे उच्चारक्रिया (Articulation), उच्चारक स्थान (Articulator), कण्ठ्य (Velar), तालव्य (Palatal), दन्त्य (Dental), ओष्ठ्य (Bilabial) आदि, यह सभी प्राचीन भारतीय उच्चार पद्धति के ही स्वरूप हैं, इससे हमें यह भी पता चलता है कि उस जमाने में भी उच्चारशास्त्र बेहद विकसित था और उसी के अनुरूप वर्णमाला की रचना की गई थी।
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अब तक हम काफ़ी परिभाषायें देख चुके हैं जैसे उच्चारक्रिया (Articulation), उच्चारक स्थान (Articulator), कण्ठ्य (Velar), तालव्य (Palatal), दन्त्य (Dental), ओष्ठ्य (Bilabial) आदि, यह सभी प्राचीन भारतीय उच्चार पद्धति के ही स्वरूप हैं, इससे हमें यह भी पता चलता है कि उस जमाने में भी उच्चारशास्त्र बेहद विकसित था और उसी के अनुरूप वर्णमाला की रचना की गई थी।