तेजसिंह राजा सुरेन्द्रसिंह के दीवान जीतसिंह का प्यारा लड़का और कुंवर वीरेन्द्रसिंह का दिली दोस्त, बड़ा चालाक और फुर्तीला, कमर में सिर्फ खंजर बांधे, बगल में बटुआ लटकाये, हाथ में एक कमन्द लिए बड़ी तेजी के साथ चारों तरफ देखता और इनसे बातें करता जाता है।
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मेरे पिता और इंद्रदेव के पिता दोनों दिली दोस्त और ऐयारी में एक ही गुरु के शिष्य थे अतएव मुझमें और इंद्रदेव में भी उसी प्रकार की दोस्ती और मुहब्बत थी इसलिए मैं प्रायः इंद्रदेव से मिलने के लिए उनके घर जाया करता और कभी-कभी वे मेरे घर आया करते थे।
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दिली दोस्त मेंरे हकीकी का ख्याल कीजिये मेहरबान कदरदान आला तू मेरे गुनाह माफ कीजिये तेरे दरबार बिच जरा गोर कीजिये हिंदून को नाथ तो कछु दावो नहीं जगन्नाथ हो तो मेरो ख्याल कीजिये ' | बेटा जीवित हो गया | बेटे को घर भेजा और देहरी पर अपने प्राण विसर्जन कर दिए अगर आप अकिदत के लिए आते हो तो स्वागत है, करो ना सरस्वती पूजा | कब्रे ही कब्रे भोजशाला के आस पास | कब्रिस्तान कब्रिस्तान चारो और कब्रिस्तान हम वो है जो पत्थर से भगवन बनाते है | ''