इस दिन जो बहनें अपने भाईयों के दीर्घजीवन के लिए यम देवता के निमिŸा दीपदान करती हैं, उन्हें अपने भाईयों का सुख दीर्घकाल तक प्राप्त होता रहता है।
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इस दिन पीपल में जल चढ़ाकर और शाम को दीप जलाकर पति के दीर्घजीवन और सुखद दांपत्य जीवन के लिए प्रार्थना की जाती है और प्रसाद वितरित किया जाता है।
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मित पाठ करता है, वह लोक व परलोक दोनों में भगवान शिव की गति को प्राप्त करता है-इस लोक में धन-धान्य, दीर्घजीवन, सुसंतान व प्रसिद्दि का भागी बनता है वहीं मृत्योपरांत शिवलोक को प्राप्त होता है।
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इस व्रत के दिन पीपल में जल चढ़ाकर तथा सायंकाल दीप जलाकर पति के दीर्घजीवन और सुखद दाम्पत्य जीवन के लिए प्रार्थना की जाती है और केले सहित मेवा मिष्ठान्न और मालपुआ एवं खीर आदि का प्रसाद वितरित किया जाता है।
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मेरे दीर्घजीवन की कामना मेरे पिता, भाई, पति, बेटों व बेटी से अधिक बढ़कर किसी ने न की होगी व न मेरे लिए इन से अधिक बढ़कर किसी ने त्याग किए होंगे, बलिदान किए होंगे, समझौते किए होंगे, सहयोग किए होंगे।
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मेरे दीर्घजीवन की कामना मेरे पिता, भाई, पति, बेटों व बेटी से अधिक बढ़कर किसी ने न की होगी व न मेरे लिए इन से अधिक बढ़कर किसी ने त्याग किए होंगे, बलिदान किए होंगे, समझौते किए होंगे, सहयोग किए होंगे।
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यथोचित परामर्श हेतु आयुर्वेद के महान मनीषी एवं गवेषक पूज्य आचार्य श्रीबालकृष्णजी महाराज के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए प्राणायाम एवं ध्यान-विषयक रंगीन चित्रों-सहित पुस्तक को भव्य-रूप में प्रकाशित करने के लिए साईं सिक्यूरिटी प्रिंटर्स लिमिटेड को भी धन्यवाद देता हूँ तथा भगवान् से इनके समृद्ध दीर्घजीवन के लिए प्रार्थना करता हूँ।
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' ' उक्त वैज्ञानिकों की यदि यह सम्मति सही है तो ऋषियों के दीर्घजीवन का मूल कारण उनकी ज्ञान वृद्धि ही मानी जायेगी और आज के व्यस्त और दूषित वातावरण वाले युग में सबसे महत्त्वपूर्ण साधन भी यही होगा कि हम अपने दैनिक कार्यक्रमों में स्वाध्याय को निश्चित रूप से जोड़कर रखें और अपने जीवन की अवधि लम्बी करते चलें।
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फैसनपरस्ती, कृत्रिमता, बनावट एवं प्रकृति विरूद्ध आहार-विहार ने मनुष्य के स्वास्थ्य और दीर्घजीवन को छीना है यह क्रम यदि न बदला, तो आगामी शताब्दी यतक वैसे ही बौने, छोटे, अल्पजीवी मनुष्य रह जाएँगें जैसे कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने उत्तरकांड में कलियुग के अंत में होने वाले मनुष्यों के संबंध में भविष्यवाणी की है।
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२ ८) विचारपूर्ण ढंग से पूछता है-” कभी जराग्रस्त न होने वाले अमीरों के समीप पहुँचकर और उनके जीवन का उपभोग करके इस लोक में रहने वाला कौन जराग्रस्त मनुष्य होगा (जो केवल शारीरिक वर्ण के राग से प्राप्त होने वाले) सौन्दर्य और प्रेम के सुखों की चिंता से पूर्ण जीवन में सुख मानेगा? '' उसी भाव से कठोपनिषद् एक क्षण भर की अमर जीवन की चिंता के सामने इन्द्रिय सुख से पूर्ण एक दीर्घजीवन की निंदा करता है।