इस शूद्र को 1000 बार जन्म अवश्य ही लेना पड़ेगा किन्तु जन्मने और मरने में जो दुःसह दुःख होता है वह इसे नहीं होगा और किसी भी जन्म में इसका ज्ञान नहीं मिटेगा।
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सूनापन सिहरा, अँधेरे में ध्वनियों के बुलबुले उभरे, शुन्य के मुख पर सलवटें स्वर की, मेरे ही उर पर,धँसती हुई सिर, छटपटा रही हैं शब्दों की लहरें मीठी हैं दुःसह!!
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मुने, जैसे दुःसह धूम और ज्वाला से युक्त अग्नि सूखे तृण को जला डालती है, वैसे ही विस्तारित कोपरूपी धूम से युक्त चिन्तारूपी ज्वाला से व्याप्त चित्त से मैं जलाया गया हूँ।।
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देवी का यह अत्यंत दुःसह शब्द, घंटे का वह शब्द जो समस्त दैत्ये सैनिकों के तेज को नष्ट करने वाला है तथा जो संपूर्ण दिशाओं को व्याप्त कर देता है, क्या है?
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शरीर की बाल्य आदि अवस्थाओं के अवसान में अर्थात् वृद्धावस्था में दुःखमय विषमावस्था को प्राप्त हुआ अतएव दुःखी जीर्ण पुरुष इस लोक में अपने पुण्य संचयशून्य अतीत कर्मों का स्मरण कर दुःसह अन्तर्दाह से जलता है।।
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सूनापन सिहरा, अँधेरे में ध्वनियों के बुलबुले उभरे, शून्य के मुख पर सलवटें स्वर की, मेरे ही उर पर, धँसाती हुई सिर, छटपटा रही हैं शब्दों की लहरें मीठी है दुःसह!!
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' दरिद्रा ने पूछा-‘ नाथ-! तब मैं खाऊंगी क्या? मुझे कौन भोजन देगा? ' दुःसह ने कहा-‘ प्रवेश के स्थान तो तुझे मालूम ही हो गये हैं, वहां घुसकर खा-पी लेना।
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' इसका भीतरी भाव यह है कि देश के बाहर से जो शोषण कार्य चल रहा है, वह इतना दुःसह न होता, यदि थोड़े अनाज से थोड़े-से आदमी हँड़िया पोंछ-पोंछ कर अपनी गुजर कर लेते।
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जो विविध दुःख हैं, दुःसह तृष्णाएँ हैं और दुष्ट मानसिक चिन्ताएँ हैं, वे सब शान्तचित्तवाले पुरुषों में इस प्रकार नाश को प्राप्त होते हैं, जैसे कि अनेक सूर्यों के प्रकाश में अन्धकार विनष्ट हो जाता है।
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अचेतन स्थिति में! अँधेरे में-2 सूनापन सिहरा, अँधेरे में ध्वनियों के बुलबुले उभरे, शुन्य के मुख पर सलवटें स्वर की, मेरे ही उर पर,धँसती हुई सिर, छटपटा रही हैं शब्दों की लहरें मीठी हैं दुःसह!!