अस्सी करोड़ बेटों की माता की ह्त्या करनेवाले! जो तुम्हे बनाकर दुश्शासन, उसका दुकूल हरनेवाले! बन्दूक-तोप-गोला-गोली, कुत्सित विचार जो बाँट रहे! जो जिह्वा घृणित बढ़ा माँ के, तन का शोणित है चाट रहे!!.
42.
बेला विभ्रम की बीत चल्ली रजनी गंधा की कली खिली-अब सान्ध्य-मलय-आकुलित दुकूल कलित हो, वों छिपते हो क्यों? वे कुछ दिन कितने सुन्दर थे! जब सावन-घन-सघन बरसते-इन आंखों की छाया भर थे!
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अंततः भाई बहनों ने गहन मंत्रणा कर आश्रम के विस्तृत प्रांगन के एक जनशून्य अलंघ्य दुकूल में महारानी के रहने की समुचित व्यवस्था कर दी तथा महारानी से वचन लिया कि अपनी गोपनीयता को संरक्षित रखते हुए वे कभी भी आश्रम के अवांछित भाग में आवागमन नहीं करेंगी.
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पौराणिक आख्यान पढ़ा |बाल मनोविज्ञान की ओर भी ध्यान गया | लेखन शैली की बात ही क्या, कुछ शब्दों की ओर आकर्षित हुआ और उन्हें नोट किये मसलन “धवल उर्मी में धुल कर बह गया ”“करुण क्रंदन ने अभिशप्त ”“वात्सल्यमयी छत्रछाया,,”“जनशून्य अलंघ्य दुकूल ”“ह्रदय को दग्ध कर दिया””
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अंततः भाई बहनों ने गहन मंत्रणा कर आश्रम के विस्तृत प्रांगन के एक जनशून्य अलंघ्य दुकूल में महारानी के रहने की समुचित व्यवस्था कर दी तथा महारानी से वचन लिया कि अपनी गोपनीयता को संरक्षित रखते हुए वे कभी भी आश्रम के अवांछित भाग में आवागमन नहीं करेंगी.
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बाल मनोविज्ञान की ओर भी ध्यान गया | लेखन शैली की बात ही क्या, कुछ शब्दों की ओर आकर्षित हुआ और उन्हें नोट किये मसलन “ धवल उर्मी में धुल कर बह गया ”“ करुण क्रंदन ने अभिशप्त ”“ वात्सल्यमयी छत्रछाया,, ”“ जनशून्य अलंघ्य दुकूल ”“ ह्रदय को दग्ध कर दिया ””
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मैं उस गंगादेवी को प्रणाम करता हूँ जो सफेद मगर पर बैठी हुई श्वेतवर्ण की है तीनों नेत्रों वाली है, अपनी सुंदर चारों भुजाओं में कलश, खिला कमल, अभय और अभीष्ट लिए हुए हैं जो ब्रह्मा, विष्णु शिवरूप है चांदसमेद अग्र भाग से जुष्ट सफेद दुकूल पहने हुई जाह्नवी माता को मैं नमस्कार करता हूँ।।
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मैं उस गंगादेवी को प्रणाम करता हूँ जो सफेद मगर पर बैठी हुई श्वेतवर्ण की है तीनों नेत्रों वाली है, अपनी सुंदर चारों भुजाओं में कलश, खिला कमल, अभय और अभीष्ट लिए हुए हैं जो ब्रह्मा, विष्णु शिवरूप है चांदसमेद अग्र भाग से जुष्ट सफेद दुकूल पहने हुई जाह्नवी माता को मैं नमस्कार करता हूँ।।
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मैं उस गंगादेवी को प्रणाम करता हूँ जो सफेद मगर पर बैठी हुई श्वेतवर्ण की है तीनों नेत्रों वाली है, अपनी सुंदर चारों भुजाओं में कलश, खिला कमल, अभय और अभीष्ट लिए हुए हैं जो ब्रह्मा, विष्णु शिवरूप है चांदसमेद अग्र भाग से जुष्ट सफेद दुकूल पहने हुई जाह्नवी माता को मैं नमस्कार करता हूँ।।
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आई एक बासंती बाला, पड़ती जल बूंदें अलकों से विकसित सुमनों की सुवास पा, नयनों से ढकती पलकों से कुछ खोल नयन फिर हाथ बढ़ा, दो सुमनों से एक तोड़ लिया डलिया के रखे फूलों में एक और सुमन भी जोड़ लिया मदिर चाल से चली, पवन से लहरा उठा दुकूल ।