चन्द्र कलाओं-ईद का चाँद, दूज का चाँद, पूर्णिमा का पूर्ण चन्द्र, अर्द्ध चन्द्रऔर चन्द्र हीन अमावस्या का ज़िक्र साहित्य और कलाओं तक ही महदूद नहीं हैं-पूर्णिमा की रात का आत्म ह्त्या के उद्दीपक के तौर पर भी ज़िक्र किया जाता रहा है ।
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खिड़की-द्वार खोलने का अवकाश नहीं है बस सोच रहा हूँ कि आसमान की छत से दूज का चाँद भी क्षितिज तल के घर में उतर गया होगा और अपने हिस्से का काम कर रहा होगा ताकि कल फिर कुछ और उजला और बंकिम होकर उदित हो सके।
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पर स्त्री हो या पर पुरुष में जो कामुक रूचि जगाता हो और आधुनिक जीवनशैली ने इन अवैध रिश्तो को नई नई परिभाषा मे मान्यताओं प्रचलन किया जा रहा है, परन्तु जो नर नारी शुभ-लाभ, गति, कल्याण, सुबुद्धि, यश और ऐश्वर्य चाहते हो तो, जिस प्रेमी को दूज का चाँद या पूनम का चाँद समझते यह मात्र भ्रम है.
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यूँ ही आशा बनी रहे हर क्षण, गुँथे वेणी गेंदे और गुलाब से हर पल, दीपावली जब भी आए अमावस में दूज का चाँद खिले हर पल एक पुरानी कविता कविता कुछ पुरानी है, सिराहने रखी किताब के पन्नों से, हर दिन झाँकती है, उम्र के साथ धूमिल होती अस्पष्ट लकीरें, गुलदावरी के समान अभी भी महकती हैं, सूखी पत्तियों की नाज़ुक पाँखुरी में बैठी ज़िन्दगी, धीमी होती नब्ज़ को टटोलती है.
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चुकी अनेक बार महाशिवरात्रि से अगले दिन का चन्द्रमा, बादल या अन्य कारण से दिखाई नहीं देता है, इसलिए, मुस्लिम समुदाए ने नया चाँद, अथार्थ दोयज़ का चाँद देख कर मास, तथा सारे शुभ कार्य करने शुरू करे ; क्यूँकी किसी कारणवश दूज का चाँद नहीं दिखा तो तीज का तो दिख जाएगा, जबकी महाशिवरात्रि का चाँद अगले दिन सुबह नहीं दिखा, तो अगले एक माह बाद ही प्रयास करा जा सकता है |