होना तो यह चाहिए कि हम भले आदमी को संसद में भेजें और यदि हम ऐसा न कर सकें और दैव योग से ऐसा हो रहा हो तो उस भले आदमी को वहाँ बने रहने में अपनी पूरी ताकत लगाएँ, उसे पूरी मदद करें-वह सारी मदद ताकि वह ‘ जरूरतमन्द ' हो कर स्खलित न हो और ‘ भला आदमी ' बना रहे।
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फिर आप किसी न किसी खेत की मूली हो कर कैसे जा पाएंगे? हाँ, ऐन उसी वक्त किसी दैव योग से मोटर साइकिल पर मंदिर के लिए निकलने वाले पुजारी जी या फिर छुट्टी मना कर अलसुबह स्टेशन से ऑटो मे लौट रहे होस्टेलर्स गुजरें और हैड लाइट से बिदक कर वे आपको जगह दे दें तो आपका सौभाग्य! वरना जो रास्ते बचते हैं वे हैं: या तो आप डिवाइडर फांद कर रोंग साइड पकड़ लें या फिर यू टर्न ले कर वापस मेन गेट तक पहुँचें और दुबारा अपनी सैर शुरू करें।