अत्रिसंहिता के अनुसार पुत्र, भाई, पौत्र (पोता), अथवा दौहित्र यदि पितृकार्य में अर्थात् श्राद्धानुष्ठान में संलग्न रहें तो अवश्य ही परमगति को प्राप्त करते हैं।
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' अर्थात जो पुत्र, भ्राता, पौत्र अथवा दौहित्र आदि पितृकार्य (श्राद्धानुष्ठान) में श्रद्धावनत् हो संलग्न रहते हैं, वे निश्चय ही परमगति को प्राप्त होते हैं।
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2-श्राद्ध में मामा, भांजा, गुरु, ससुर, नाना, जमाता, दौहित्र, वधू, ऋत्विज्ञ एवं यज्ञकर्ता आदि को भोजन कराना शुभ रहता है।
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यह भारतीय संस्कृति की ही चिर पुरातन मान्यता है कि जैसे पुत्र अपने पिता, पितामह इत्यादि पितरों को नरकों से तारता है, इसी प्रकार दौहित्र अपने नाना को ।
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पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के दौहित्र हजरत इमामहुसैन तथा उनके साथियों की शहादत की याद में मनाए जाने वाले मोहर्रम पर सोमवार रात जहां कत्ल की रात मनाई गई, वहीं...
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श्राद्ध में महत्व के साथ पदार्थ:-गंगाजल, दूध, शहद, कुशा, सूती कपडा, दौहित्र और तिल-ये कुल सात श्राद्ध में बहुत ही महत्व के प्रयोजनीय हैं.
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वास्तविकता तो यह थी कि यात्रा के आनन्द को वह बेटी-दामाद और दौहित्र के साथ भोगना चाहती थी और इस उल्लास में बच्चे के स्वास्थ्य-सम्बन्धी सुरक्षा की ओर अतिरिक्त विश्वास से भर उठी थी।
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भारतीय गणों के सिरमौरों में से एक-लिच्छवियों-के ही दौहित्र समुद्रगुप्त ने उनका नामोनिशान मिटा दिया और मालव, आर्जुनायन, यौधेय, काक, खरपरिक, आभीर, प्रार्जुन एवं सनकानीक आदि को प्रणाम, आगमन और आज्ञाकरण के लिये बाध्य किया।
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भारतीय गणों के सिरमौरों में से एक-लिच्छवियों-के ही दौहित्र समुद्रगुप्त ने उनका नामोनिशान मिटा दिया और मालव, आर्जुनायन, यौधेय, काक, खरपरिक, आभीर, प्रार्जुन एवं सनकानीक आदि को प्रणाम, आगमन और आज्ञाकरण के लिये बाध्य किया।
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भारतीय गणों के सिरमौरों में से एक-लिच्छवियों-के ही दौहित्र समुद्रगुप्त ने उनका नामोनिशान मिटा दिया और मालव, आर्जुनायन, यौधेय, काक, खरपरिक, आभीर, प्रार्जुन एवं सनकानीक आदि को प्रणाम, आगमन और आज्ञाकरण के लिये बाध्य किया।