फ़ ट्रायलस ऐंड क्रेसिडफ़ में प्रयुक्त सात पंक्तियों का फ़ राइम रायलफ़ और फ़ दि कैंटरबरी टेल्सफ़ में प्रयुक्त दशवर्णी तुकांत द्विपदी का व्यापक प्रयोग आगे की अंग्रेजी कविता में हुआ।
42.
एक विचारक के बहु-वचन ' में सुरेन्द्र वर्मा ने ‘ चेतना के द्वार ' (कविता संग्रह, कवि रमेश कुमार त्रिपाठी) जापानी विधा हाइकू से अलग हटकर विधा द्विपदी माना है।
43.
हिन्दी में सम पदांत-तुकांत की रचनाओं को मुक्तक कहा जाता है क्योकि हर द्विपदी अन्य से स्वतंत्र (मुक्त) होती है. डॉ. मीरज़ापुरी ने इन्हें प्रच्छन्न हिन्दी गजल कहा है.
44.
इसी प्रवृत्ति से बेन जॉन्सन की संतुलित, स्वायत्त और सूक्ति प्रधान दशवर्णी द्विपदी (हिरोइक कपलेट) का जन्म हुआ, जो चॉसर की द्विपदी से बिलकुल भिन्न प्रकार की है और जो 18वीं शताब्दी की कविता पर छा गई।
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इसी प्रवृत्ति से बेन जॉन्सन की संतुलित, स्वायत्त और सूक्ति प्रधान दशवर्णी द्विपदी (हिरोइक कपलेट) का जन्म हुआ, जो चॉसर की द्विपदी से बिलकुल भिन्न प्रकार की है और जो 18वीं शताब्दी की कविता पर छा गई।
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यह द्विपदी नामकरण परंपरा को बाद में नामावली के जैविक कोड में बदलने का काम सबसे पहले लियोनहार्ट फुक्स द्वारा प्रयोग किया गया और मानक के रूप में केरोलस लिनेयस द्वारा 1753 में स्पेसीज़ प्लेंटारम (उसके 1758 सिस्टेम नेचर, दसवें संस्करण) में जारी किया गया.
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यह द्विपदी नामकरण परंपरा को बाद में नामावली के जैविक कोड में बदलने का काम सबसे पहले लियोनहार्ट फुक्स द्वारा प्रयोग किया गया और मानक के रूप में केरोलस लिनेयस द्वारा 1753 में स्पेसीज़ प्लेंटारम (उसके 1758 सिस्टेम नेचर, दसवें संस्करण) में जारी किया गया.
48.
लगभग दो सहस्त्र वर्ष पूर्व अस्तित्व में आये दोहा छंद को दूहा, दूहरा, दोहरा, दोग्धक, दुवअह, द्विपथा, द्विपथक, द्विपदिक, द्विपदी, दो पदी, दूहड़ा, दोहड़ा, दोहड़, दोहयं, दुबह, दोहआ आदि नामों संबोधित किया गया.
49.
सम्मिलन-संकेत को प्रभावी करते रक्त-वर्ण को इंगित करती द्विपदी को ' धार-रक्तिम ' के ' उपटने ' का आवरण दे देह की आवृति को सस्वर करता चला गया. भासित ' अल्पनाओं ' को मुखरित करती दशा स्वयमेव बनती चली गयी. ' नट की तरह ' सधे मिसरों का होना यही कारण बना, आदरणी य.
50.
इस मन्त्र से अगले मन्त्र में, उसी आत्मा की वाक् शक्ति को गौरी कहा गया है जो उक्त '' समानम् उदकम् '' को अनेक ('' सलिलानि '') में परिणत करती हुई एकपदी, द्विपदी, चतुष्पदी, अष्टापदी और नवपदी हो जाती है, यद्यपि वह मूलतः परम व्योम में स्थित सहस्राक्षरा वाक् है-