द्वैध शासन लॉर्ड क्लाइब द्वारा लागू किया गया था जिससे कम्पनी को दीवानी प्राप्ति होने के साथ प्रशासनिक व्यवस्था भी मजबूत हो सके ।
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द्वैध शासन से कृषि व्यवस्था पर प्रभाव पड़ा, राजस्व वसूली सर्वोच्च बोली बोलने वाले को दी जाने लगी और ऊपर से 1770 ई.
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वस्तुतः द्वैध शासन प्रणाली दोषपूर्ण थी, जिसके प्रमुख दुष्परिणाम इस प्रकार थे ब्रितानियों ने राजस्व के समस्त साधनों र अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था।
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प्रख्यात इतिहासकार स्वर्गीय डा. योगेन्द्र मिश्र लिखते हैं-‘ बिहार उड़ीसा प्रदेश सहित भारत ने द्वैध शासन प्रणाली 1920 से से 1937 तक प्रचलित रही।
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आजादी के बाद भी उस कांग्रेस ने इस द्वैध शासन को बनाये रखा जो १ ९ १ ९ से ही इसका विरोध करती आ रही थी.
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द्वैध शासन की व्यवस्था बिहार में भी २ ० दिसम्बर, १ ९ २ ० को प्रारम्भ हुई जिसकी अध्यक्षता आर. एन. मुधोलकर ने की ।
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इसमें उसने द्वैध शासन प्रणाली के दोषों पर जोर दिया और कम्पनी का अन्त कर भारतीय प्रदेशों का शासन प्रबन्ध इंग्लैण्ड की सरकार के हाथों में हस्तान्तरित करने का प्रस्ताव लाया।
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जनता की इस माँग को पूरा करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने इस अधिनियम द्वारा द्वैध शासन व्यवस्था को समाप्त कर दिया और उसके स्थान पर एक नयी व्यवस्था स्थापित की।
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आधुनिक बिहार की जानकारी, बिहार के अंग्रेजी शासन की गतिविधियों, द्वैध शासन प्रणाली का प्रभाव, विभिन् न धार्मिक एवं सामाजिक आन्दोलन, पत्र-पत्रिकाओं आदि में मिलती हैं ।
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(2) इस अधिनियम का महत्त्व इस बात में भी निहित है कि इसने स्वदेश में द्वैध शासन व्यवस्था को समाप्त कर दिया, जो पिछले 74 वर्षों से कम्पनी के प्रशासन का आधर बनी हुई थी।