आजकल तो समाज में धन का असमान वितरण इतना विकराल है कि जिनके पास धन अल्प मात्रा में है उनको धनवान लोग पशुओं से भी अधिक बदतर समझते हैं।
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यही कारण से ही हमारे राजा और नगरपति-धनवान लोग सोने की थाली में ही खाना खाते थे, जिससे सुवर्ण घिसाता हुआ हमारे शरीर के भीतर जाये।
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गाँधीजी का एक बड़ा सपना था समता मूलक समाज बनाने का, ऊँच-नीच का भेद समाप्त हो, हर व्यक्ति को काम मिले, धनवान लोग अपनी सम्पत्ति के मालिक नहीं, ट्रस्टी बनें।
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जितने शौचालय देश में चाहिए, उतने अगर बन गए तो हमारा जल संकट घनघोर हो जाएगा पर नदियों का दूषण केवल धनवान लोग करते हैं, जिनके पास शौचालय हैं।
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किन् तु पुराने समय में बहुतेरे धनवान लोग चोरों से धन की सुरक्षा के लिए अपने धन और बहुमूल् य रत् नों को घड़े में रखकर ज़मीन में गाड़ देते थे।
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आर्थिक-यह समाज के सबसे धनवान लोग होते हैं और अक्सर अपने प्रभाव से अपने इस स्थान को बनाए रखने के लिए राजनैतिक और न्याय प्रणाली का भी उपयोग करते हैं।
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परंपरागत चीज़ों जैसे रोटी, चावल, दाल, सब्जी, मिर्च, मसाले वाला भोजन एक तरह की विलासिता माना जाता था जिसे काफी धनवान लोग ही खा सकते थे या कभी-कभी फिजूलखर्ची करके मध्यमवर्गीय लोग खाते।
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अँगरेजी शब्द काटेज के अर्थ में छोटा मकान जिसे धनवान लोग नगर के बाहर बाग बगीचे में, या ग्रीष्मकाल में पर्वतीय स्थलों पर, थोड़े दिन के विश्राम एवं मनोरंजन के हेतु, बनवाते हैं।
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अँगरेजी शब्द काटेज के अर्थ में छोटा मकान जिसे धनवान लोग नगर के बाहर बाग बगीचे में, या ग्रीष्मकाल में पर्वतीय स्थलों पर, थोड़े दिन के विश्राम एवं मनोरंजन के हेतु, बनवाते हैं।
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खास कर धनवान लोग. जहाँ लोग भौतिक सुखों के लिए किसी भी स्तर तक गिर रहे हैं वहां क्रांति!!!!! पैसे के लिए लोगों ने अपने बच्चो को रोबोट बना दिया है.