संस्था द्वारा धार्मिक शिक्षण शिविरो हेतु बालबोध (चारों भाग), छहढ़ाला, द्रव्य संग्रह तथा वर्ण व्यवस्था, अवध निर्देशिका, जैन ला, करणानुयोग दीपक, ऐसे थे चारित्र चक्रवर्ती, आगम पथ, विदेशों में जैन धर्म, चिन्तन प्रवाह, दशलक्षण मण्डल विधान, सुहेल बावनी, महासभा की प्रगति रिपोर्ट, नैतिक शिक्षाप्रद कहानियां, बालबोध जैन धर्म आदि महत्वपूर्ण साहित्य का नवीन या पुनप्र्रकाशन हुआ है।
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ये अनुच्छेद इस प्रकार हैं-1 राज्य कोष से संपूर्णत: संधारित होने वाली किसी भी शैक्षणिक संस्था में धार्मिक शिक्षा नह दी जाएगी तथा (3) राज्य के द्वारा मान्यता प्राप्त या राजकोष से सहायता प्राप्त किसी शिक्षण संस्था में उसकी या यदि वह नाबालिग है तो उसके अभिभावक द्वारा सहमति के बिना कोई धार्मिक शिक्षण नह होगा।
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में धार्मिक शिक्षा के अलगाव को पाँच पहली (मंत्रालय शिक्षा परिपत्र संख्या 5 / 2007 के लिए) स्कूल 14 को छात्र के माता पिता के द्वारा बनाए गए कैलेंडर के अनुसार दिन जीवन के वर्ष, स्वयं आकलन (' नोट ') धार्मिक शिक्षण प्रमाणपत्र में पहली जगह में है कि विद्यार्थियों द्वारा पीछा किया.
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प्रत्येक वर्ष भारत की सर्वप्रमुख एवं सर्वाच्च सेवा परीक्षा समझे जाने वाली संघ लोक सेवा आयोग (यू पी एस सी) की परीक्षा में जहां कई मुस्लिम छात्रों की सफलता के समाचार मिलते हैं, वहीं गत् वर्ष देवबंद जैसे इस्लामी धार्मिक शिक्षण संस्थान के एक छात्र द्वारा भी इस परीक्षा में सफलता हासिल किए जाने का समाचार है।
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इसी के साथ-साथ संघ द्वारा सिरीवाल प्रवृत्ति, आगम अहिंसा समता एवं प्राकृत संस्थान उदयपुर, संस्कार प्रदान करने हेतु धार्मिक शिक्षण शालाओं, श्री गणेश जैन छात्रावास, स्वधर्मी सहयोग, छात्रवृत्तियाँ, सुरेन्द्रकुमार सांड शिक्षा सोसायटी नोखा, समता चिकित्सालय डोंडीलोहारा, समता जनकल्याण प्रन्यास, आचार्य श्री नानेश होमियापैथिक चिकित्सालय आदि स्थापित कर मानव सेवा के कार्यों को गति प्रदान की गई है।
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माता-पिता ने अपने बच्चों को व्यावहारिक शिक्षण नहीं दिया हो तो वे बच्चे बडे होकर माता-पिता को दोष देते हैं और दुनिया भी उन मां-बाप को ठपका दिए बिना नहीं रहती, परन्तु माता-पिता ने बच्चों को धार्मिक शिक्षण नहीं दिया हो तो उन मां-बाप को दोष देने वाले कितने? व्यावहारिक शिक्षण के प्रति आज माता-पिता जितने जागरूक हैं, क्या धार्मिक शिक्षण के प्रति उतनी जागरूकता है?
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माता-पिता ने अपने बच्चों को व्यावहारिक शिक्षण नहीं दिया हो तो वे बच्चे बडे होकर माता-पिता को दोष देते हैं और दुनिया भी उन मां-बाप को ठपका दिए बिना नहीं रहती, परन्तु माता-पिता ने बच्चों को धार्मिक शिक्षण नहीं दिया हो तो उन मां-बाप को दोष देने वाले कितने? व्यावहारिक शिक्षण के प्रति आज माता-पिता जितने जागरूक हैं, क्या धार्मिक शिक्षण के प्रति उतनी जागरूकता है?
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पय्थागोरस को दुनिया के महान गणितज्ञों में से एक माना जाता है, उन्हें एक महान रहस्यवादी और वैज्ञानिक का भी श्रेय प्राप्त है | इन्होने इस दुनिया को पय्थागोरिय्न प्रमेय दिया जो आज तक गणित में प्रयोग किया जाता है | उन्होंने दर्शन और धार्मिक शिक्षण के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया, हालांकि उनमें से सभी गणित पे आधारित थीं | वे पहले आदमी थे जिन्होंने खुद को एक दार्शनिक या ज्ञान का प्रेमी बुलाया और वे इस पूरी दुनिया में संख्याओं के पिता (