| 41. | धेनु आश्रम की ओर भाग पड़ी।
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| 42. | जमुनाके नीर तीर धेनु चरावे संग लखो लिये ग्वाल ॥ने०॥३॥
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| 43. | चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥
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| 44. | धेनु रूप धरि हृदय बिचारी ।
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| 45. | (मानस, 4/26) बिप्र धेनु सुर सन्त हित, लीन्ह मनुज अवतार।।
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| 46. | कूप नीर बिन, धेनु क्षीर बिन, मन्दिर दीप बिना।
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| 47. | सब समान के साथ एक शय्या और दूध देने वाली धेनु
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| 48. | आठहुँ सिद्धि, नवों निधि को सुख, नंद की धेनु चराय बिसा
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| 49. | कामनाओं एवं दुग्ध से पूर्ण करने वाली भूमि एवं धेनु हों।
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| 50. | ब्राह्मणों ने इस स्वर्ण निर्मित धेनु के टुकड़े-टुकड़े करके स्वस्वभाव ग्रहण
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