दर असल नास्तिकता संसार का सब से बड़ा धर्म होता है और धर्म की बात ये है कि यह बहुत ही कठोर होता है, क्यूंकि यह उरियाँ सदाक़त अर्थात नग्न सत्य होता है.
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विंटेज हास्य (11) विजयी हीरो जय (2) यह ईव के साथ प्रारंभ (2) एक दिन के लिए लेडी (2) पैट और माइक (2) अर्ध नग्न सत्य (2) युद्ध (12) छापे (2) सातवीं क्रॉस (2) रेल (2) वे
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बेमानी हो जाते हैं वचन-वायदे! और-प्यार बन जाता है निपट स्वार्थ का समानार्थक! अभिप्राय बदल लेती हैं व्याख्याएँ पाप-पुण्य की, छल-आत्माओं के मिलाप का नग्न सत्य में / यथार्थ रूप में उतर आता है!
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यह वह अंतर्कथा है जो बताती है की कभी कभी चमकदार सफलताओं के भीतर का नग्न सत्य कैसा होता है-किसकी नकारात्मकता किसकी सकारात्मकता को उभार दे यह भी एक विचित्र विपर्यय ही है-एक छुपा हुआ अभिशाप-
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आज सभी इस सत्य को जानते है कि गाजर घास आयातित गेहूँ के साथ विदेश से भारत लायी गयी पर हमारे बीच विशेषज्ञो का एक ऐसा समूह भी है जो इस नग्न सत्य को झुठलाने मे जुटा हुआ है।
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जब सच्चाई को साफ-साफ यानीं नग्न सत्य देखने की जगह नंगे होकर सत्य दिखाने वाली पत्रकारिता की हवा तेज है, तो ऐसे में इलाहाबाद विश्वविद्यालय का स्ववित्तपोषित पत्रकारिता कोर्स चलाने का फैसला काफी कुटिलता के साथ लिया गया है।
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यदि यह सब देखने के बाद भी जिन्हें आज की पत्रकारिता वेश्यावृत्ति नहीं लगती उनसे मेरा करबद्ध निवेदन है की वे इस नग्न सत्य को स्वीकारे कुछ लोगो को यह बात काटे की तरह खटकेगी लेकिन सच तो सच होता है।
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क्या होनी चाहिए कविता की भाषा? छद्म या नग्न सत्य? यदि नग्न सत्य आँखों और कानो को चुभता है, हमारा सामाजिक परिवेश और हमारी मान्यताएँ, हमें मजबूर करती हैं कि हम नग्न सत्य को छद्म से भर दें।
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क्या होनी चाहिए कविता की भाषा? छद्म या नग्न सत्य? यदि नग्न सत्य आँखों और कानो को चुभता है, हमारा सामाजिक परिवेश और हमारी मान्यताएँ, हमें मजबूर करती हैं कि हम नग्न सत्य को छद्म से भर दें।
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क्या होनी चाहिए कविता की भाषा? छद्म या नग्न सत्य? यदि नग्न सत्य आँखों और कानो को चुभता है, हमारा सामाजिक परिवेश और हमारी मान्यताएँ, हमें मजबूर करती हैं कि हम नग्न सत्य को छद्म से भर दें।