यदि वह अपने कुफ्र की अवस्था में ही मर गया तो वह नरकवासी होगा, और यदि उसने तौबा (पश्चाताप) कर लिया और इस्लाम की तरफ वापस लौट आया और मरने तक उस पर जमा रहा तो उसका धर्म से मुर्तद्द हो जाना उसे हानि नहीं पहुँचाये गा, और वह स्वर्गवासियों में से होगा, यद्यपि वह एक से अधिक बार मुर्तद्द हुआ हो।
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याते ये चक्की भली, पीस खाय संसार ॥“ समाज में कोई सुधार न होता देख वे हतोत्साहित भी होते थे, और उन्हें लगता था बाकि लोग तो बेफिक्र हैं, एक वे ही परेशान हो रहे हैं-”सुखिया सब संसार जो खावै और सोवे, दुखिया दास कबीर जो जागे और रोवै...“ ऐसा माना जाता था कि काशी में प्राण त्यागने वाले स्वर्गवासी और मगहर में मरनेवाले नरकवासी होते थे, जिसे कबीर ने सिरे से नकारा और जान-बूझकर अपना अंतिम समय मगहर में व्यतीत किया जहाँ उनका देहावसान हुआ-”क्या काशी क्या ऊसर मगहर, राम हृदय बस मोरा।