नामिक ग्लेशियर से 14 किमी नीचे प्रकृति की सुरम्य वादियों, लेकिन बेहद कठिन जीवन जी रहे 112 परिवारों वाले नामिक गांव में छह माह ही आवाजाही होती है।
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1980 में सीमांत जिले के नामिक के जागरूक ग्राम प्रधान और एक शिक्षक ने जो सपना देखा था वह न केवल पूरा हुआ बल्कि औरों के लिए भी मिसाल बन गया।
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इन्हीं में से एक हैं, मुनस्यारी तहसील के बिर्थी केन्द्र की ए. एन. एम. राधा भट्ट, जिन्हांने नामिक जैसे दूरस्थ अंचल तक पहुँचकर स्वास्थ्य सुविधाएँ पहुँचायी हैं।
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पिथोड़ागढ़ उत्तराखंड का सबसे पूर्वी जिला है यहां कैलाश-मनसरोवर के लिए रास् ता निकलता है पिथोड़ागढ़ मनोहर मिलान हिमनद छोटा कैलाश और नामिक का गेट भी कहा जा सकता है.
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ग्राम प्रधान तुलसी देवी शासन और सरकारी तंत्र की उपेक्षा पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहती हैं कि उन्हें लगता ही नहीं कि नामिक के लोग भी इस देश के नागरिक हैं।
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अंतिम छोर पर बसे इस गांव के लोग आजादी के बाद से होकरा नामक स्थान से नामिक तक सड़क बनाने की मांग कर रहे हैं लेकिन आज तक सड़क को मंजूरी नहीं मिली।
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बात नामिक के 118 परिवारों की 700 आबादी की दिक्कत की करें तो इन लोगों को सड़क में आने के लिए बिर्थी के पास द्वालीगाड़ तक 27 किमी की पैदल यात्रा करनी पड़ती है।
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उत्तराखण्ड के तीर्थ व पर्यटन स्थलों-केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री-गोमुख, यमुनोत्री, तुंगनाथ, ऊखीमठ, पिंडारी, कफनी व नामिक हिमनद इत्यादि तक जाने का सौभाग्य मुझे अनेक बार मिला है।
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उत्तराखण्ड के कुमाऊं के उच्च हिमालयी क्षेत्र में साहसिक पर्यटन की अपार सम्भावनाएं हैं, इनमें मुख्य रूप से पिंडारी, कफनी, सुन्दरढुंगा, नामिक, हीरामणि, मिलम व पंचाचूली ग्लेषियर प्रमुख हैं।
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दूरी में बसे नामिक, कीमू, समडर, बोरबलड़ा, भरड़काण्डे और हिमनी, घेस, बलाण, सीक जैसे पिथौरागढ़, बागेश्वर, चमोली व रुद्रप्रयाग जिले के अनेक गाँवों का अध्ययन कर चुका है।