उसे अमर होना है इतिहास में नाम दर्ज कराना है हे नाथ क्षमा करना वही करता है भ्रष्ट सब काम उसके चेहरे पर कई चेहरों की पर्तें जिनका जरूरत के मुताबिक करता इस्तेमाल यह देश उसे ही मानता है आजकल सभ्य नागरिक शिष्टजन अध्यापक वैज्ञानिक राजनीतिज्ञ समाजशास्त्री भाषाविद इत्यादि.....
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आगे पढ़ाई जारी रखने की अपेक्षित इच्छा-शक्ति व लगन भले ही उनमें बिल्कुल नहीं हों, लेकिन पारिवारिक दबाव और सामाजिक प्रतिष्ठा के चक्कर में पड़कर उन्हें क्षेत्र विषय में अपनी दिलचस्पी व स्थान को ताक पर रखकर बगैर सोचे-विचारे आई. ए.-बी. ए. मे अपना नाम दर्ज कराना पड़ता है।
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करीब एक करोड़ बंगलादेशी घुसपैठियों की समस्या से जूझ रही असम सरकार ने केंद्र को सलाह दी है कि जो व्यक्ति नेशनल रजिस्टर आफ सिटिजन्स, 1951 में अपना नाम दर्ज कराना चाहते हैं, उनका डी. एन. ए.ट ेस्ट होना चाहिए ताकि यह पता चल सके कि उनके पूर्वज यहीं के हैं।
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पता नहीं इतना त्यागकर कौन-सी आशा संजोये हुए थे? एक अफ़सर ने तो यहाँ तक किया कि एक डॉक्टर ने उन सबके नाम दर्ज कराना आरंभ कर दिया, जो साहब को देखने या उनकी कुशलक्षेम पूछने अस्पताल आए, ताकि सनद रहे और वर्ष के अंत में गोपनीय चरित्रावली लिखते समय साहब के काम आए।
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जब राजनेताओं, नौकरशाहों और यहां तक कि आम आदमी में भी उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यमों के स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने की जद्दोजहद चरम पर हो, तब एक जिलाधीश द्वारा तमिल माध्यम के साधन विहीन विद्यालय में बेटी का नाम दर्ज कराना एक ऐसी आदर्श और अनूठी पहल है, जिसे समान शिक्षा का एक कारगर उपाय माना जा सकता है।
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जब राजनेताओं, नौकरशाहों और यहां तक कि आम आदमी में भी उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यमों के स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने की जद्दोजहद चरम पर हो, तब एक जिलाधीश द्वारा तमिल माध्यम के साधन विहीन विद्यालय में बेटी का नाम दर्ज कराना एक ऐसी आदर्श और अनूठी पहल है, जिसे समान शिक्षा का एक कारगर उपाय माना जा सकता है।
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उन्होने बताया कि लोक सेवा केन्द्र में शासन के 16 विभाग की 52 योजनाएं सम्मिलित है जिनमे आय प्रमाण पत्र तीन दिन में, खसरा खतौनी 5 दिन मे, दीन दयाल अन्त्योदय कार्ड 7 दिन मे, बीमारी सहायता 10 दिन मे, बीपीएल सूची में नाम दर्ज कराना, प्रसूति सहायता, निर्माण श्रमिक पंजीयन, राष्ट्रीय परिवार सहायता का लाभ, एपीएल और बीपीएल राशन कार्ड प्राप्त करना आदि सुविधाएं 30 दिवस मे उपलब्ध कराई जाएगी।
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देश में होने वाले विधायिका के हर चुनाव में 40 से 50 फीसदी जनता तो पहले से ही कह देती है कि “ इनमें से कोई नहीं ” और यही कारण है कि इतनी बड़ी तादात में जनता कभी मतदान करने नहीं जाती! अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बस यह हो सकता है जिसे रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराना हो वो ही मतदान केंद्र पहुंचेगा, लेकिन प्रश्न आज भी खड़ा है, क्या इससे भारत की मतदान प्रक्रिया सुधरेगी?