ध्यान कीजिए कि सूर्य की किरणों जैसा प्रवाह वायु में संमिश्रित होकर दाहिने नासिका छिद्र में अवस्थित पिंगला नाड़ी द्वारा अपने शरीर में प्रवेश कर रहा है और उसकी ऊष्मा अपने भीतरी अंग-प्रत्यंगों को तेजस्वी बना रही है।
42.
तीन बार बाएँ नासिका से श्वास खींचना-छोड़ना, तीन बार दाएँ नासिका से श्वास खींचना-छोड़ना तथा एक बार दोनों नासिका छिद्र से श्वास खींचना और मुँह से निकालना, यह सात विधान मिलकर एक नाड़ी शोधन प्राणायाम हुआ।
43.
अनुलोम-विलोम प्राणायाम-ध्यानस्थ मुद्रा में सीधे बैठकर हाथों को चेहरे के करीब लाकर सहज मुद्रा में दांये हाथ से अंगूठे के द्वारा दांयी ओर के नासिका छिद्र को बन्द करके नाक के बांये छिद्र से धीरे-धीरे श्वास अन्दर भरें ।
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(4) ध्यान कीजिए कि सूर्य की किरणों जैसा प्रवाह वायु में सम्मिलित होकर दाहिने नासिका छिद्र में अवस्थित पिंगला नाड़ी द्वारा अपने शरीर में प्रवेश कर रहा है और उसकी ऊष्मा अपने भीतरी अंग-प्रत्यंगों को तेजस्वी बना रही है ।
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4. अनुलोम-विलोम प्राणायाम-ध्यानस्थ मुद्रा में सीधे बैठकर हाथों को चेहरे के करीब लाकर सहज मुद्रा में दांये हाथ से अंगूठे के द्वारा दांयी ओर के नासिका छिद्र को बन्द करके नाक के बांये छिद्र से धीरे-धीरे श्वास अन्दर भरें ।
46.
रूपक को स्पष्ट करते हुए नारद जी कहते हैं-” पुरंजन देहधारी जीव है और नौ द्वार वाला नगर यह मानव देह है (नौ द्वार-दो आंखें, दो कान, दो नासिका छिद्र, एक मुख, एक गुदा, एक लिंग) ।
47.
जब कभी सर्दी-गर्मी एक साथ लगने या एलर्जी के कारण हमारी नासिका छिद्र बंद हो जाती है, तब घुटन महसूस होने लगती है और किसी गंध की अनुभूति नहीं होती, उस स्थिति में हमारा मस्तिष्क अतिरिक्त काम कर सूंघने की क्षमता को पूर्व स्थिति में ले आता है।
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जब कभी सर्दी-गर्मी एक साथ लगने या एलर्जी के कारण हमारी नासिका छिद्र बंद हो जाती है, तब घुटन महसूस होने लगती है और किसी गंध की अनुभूति नहीं होती, उस ाqस्थति में हमारा माqस्तष्क अतिरिक्त काम कर सूंघने की क्षमता को पूर्व ाqस्थति में ले आता है।
49.
श्वास पूरा अन्दर भर चुकने पर बीच की व अनामिका (रिंग फिंगर) उंगली से नाक के बांये स्वर को बन्द करके दांई ओर के नासिका छिद्र से आप इस श्वास को बाहर निकाल दें उसके बाद यही प्रक्रिया दांई ओर के नासिका छिद्र से श्वास अन्दर भरकर बांई ओर के नासिका छिद्र से बाहर निकालकर इसे दोहराते चलें ।
50.
श्वास पूरा अन्दर भर चुकने पर बीच की व अनामिका (रिंग फिंगर) उंगली से नाक के बांये स्वर को बन्द करके दांई ओर के नासिका छिद्र से आप इस श्वास को बाहर निकाल दें उसके बाद यही प्रक्रिया दांई ओर के नासिका छिद्र से श्वास अन्दर भरकर बांई ओर के नासिका छिद्र से बाहर निकालकर इसे दोहराते चलें ।