‘‘ … सबसे मुश्किल और एक ही सही रास्ता है कि मैं सब सेनाओं में लड़ूँ-किसी में ढाल सहित, किसी में निष्कवच होकर-मगर अपने को अन् त में मरने सिर्फ अपने मोर्चे पर दूँ-अपनी भाषा के, शिल्प के और उस दोतरफा जिम्मेदारी के मोर्चे पर जिसे साहित्य कहते हैं।
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उनकी इस नियति को हिंदी के विख्यात कवि रघुवीर सहाय की इस पंक्ति से समझा जा सकता है ः सबसे मुश्किल और एक ही सही रास्ता है कि मैं सब सेनाओं में लडूँ, किसी में ढाल सहित, किसी में निष्कवच होकर-मगर अपने को अंत में मरने सिफर् अपने मोर्चे पर दूँ ('आत्महत्या के विरुद्ध‘ की भूमिका में)।
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' निष्कवच ' और ' तत्सम ' (उपन्यास), और ' अंधे मोड़ से आगे ', ' तीसरी हथेली ', ' दूसरे देशकाल में ', ' यात्रा मुक्त ', ' यह कहानी नहीं ', और ' खाली लिफाफा ' जैसे कहानी संग्रहों ने उन्हें हिंदी साहित्य में एक नया मुकाम दिया।
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जो बात है वो यह कि उस दिन क्रिसमस था, मैं उनके लिए फूल लेके गया था (हिंदी में शायद ही किसी और लेखक के जीवन में क्रिसमस वैसे अर्थवान हो जैसे उनके लिए था); 'ये आप मेरे लिए लाये हैं?' उन्होंने लगभग किसी बच्चे की तरह प्रफुल्लित होते हुए कहा, उनके हाथ जिस ऊष्मा से उन फूलों को करीब दो मिनट तक थामे रहे मुझे लगा मैं निष्कवच हो गया हूँ.
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इनकी रचनाओं मंे ‘ निष्कवच ' (उपन्यास), ‘ तत-सम ' (उपन्यास), ‘ अन्धे मोड से आगे ' (कहानी-संग्रह), ‘ तीसरी हवेली ' (कहानी-संग्रह), ‘ यात्रा मुक्त ' (कहानी-संग्रह), ‘ दूसरे देश काल में (कहानी-संग्रह), ‘ यह कहानी नहीं ' (कहानी-संग्रह), के अतिरिक्त जर्मन कवि राइनेर मारिया के पत्रों की दो पुस्तकों का हिंन्दी में रूपान्तरण भी किया है।
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जो बात है वो यह कि उस दिन क्रिसमस था, मैं उनके लिए फूल लेके गया था (हिंदी में शायद ही किसी और लेखक के जीवन में क्रिसमस वैसे अर्थवान हो जैसे उनके लिए था) ; ' ये आप मेरे लिए लाये हैं? ' उन्होंने लगभग किसी बच्चे की तरह प्रफुल्लित होते हुए कहा, उनके हाथ जिस ऊष्मा से उन फूलों को करीब दो मिनट तक थामे रहे मुझे लगा मैं निष्कवच हो गया हूँ.