क्या इस युग में भी लीडिया स्वयं को उस नैतिक बोध से स्वतन्त्र नहीं कर पायेगी? परिवार, पति, बच्चे और समाज ……
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यहाँ सवाल यह भी है कि किसी इंसान का नैतिक बोध (सही निर्णय लिये जाने के संदर्भ में) किस कीमत पर जागृत होता है?
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कर्म के साथ-साथ दायित्व से भी अलगाव, यानी यह परिभाषा गहरे नैतिक बोध से निहित है जिसमें आनंद में समाया ठालापन गलत नहीं तो उपेक्षणीय तो है ही।
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उन्होंने प्रेस की जिम्मेदारी, नैतिक बोध और आचार संहिता पर भी प्रकाश डाला और कहा कि प्रेस के कर्तव्यों और उतरदायित्व को बेहतरी से समझने की जरूरत है।
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क्या मैंने अपने नैतिक बोध को चकमा देकर राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के अध्यक्ष पद को लाभ के पदों की सूची से बाहर रखने का कानून नहीं बनवा दिया है?
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हमारे कुल अनुभव की सबसे चकित कर देने वाली सच्चाई हमारा नैतिक बोध ही है, लालच के आगे हमेशा मौजूद रहने वाला वह भाव, जो बताता है कि यह या वह ग़लत है।
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पर अगर वह पशु अनुशासन के नाम पर अपने नैतिक बोध को, सद्-विवेक को ताक़ में रख दे, और फिर सजह पशु-प्रवृत्ति की झोंक में अनुशासन को भी भुला दे...
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अगर मन भी एक यंत्र है, और बाहरी प्रभावों को नियंत्रित करके उसकी सभी क्रियाओं को अनुशासित और निर्दिष्ट किया जा सकता है, तो नैतिक बोध भी केवल एक यंत्रशासित कल्पना है।
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हमारे कुल अनुभव की सबसे चकित कर देने वाली सच्चाई हमारा नैतिक बोध ही है, लालच के आगे हमेशा मौजूद रहने वाला वह भाव, जो बताता है कि यह या वह ग़लत है।
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ऐसे भी तो केस होते हैं, जहाँ फौज गोली चलाने से इनकार कर देती है, जैसे सिविलियनों पर, या औरतों पर-आखिर वह नैतिक बोध ही तो होता है न? ''