साथ ही वे पंडित पंचाक्षरी स्वामी मट्टिगट्टि के भी शिष्य हैं जो कि जयपुर-अतरौली घराने के पंडित मल्लिकार्जुन मंसूर के एक वरिष्ठ शिष्य हैं.
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इस दोष की शांति के लिए व्यक्ति को नियमित शिव पंचाक्षरी मंत्र “ ओम नम: शिवाय” अथवा महामृत्युंजय मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए.
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फिर शिव पंचाक्षरी मंत्र क्क नमः शिवाय अथवा शिव गायत्री मंत्र क्क तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् का 1 माला जप करके रुद्राक्ष-धारण करें।
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पंचाक्षरी आदि मंत्रों का उपदेश देनेवाले गुरु बोधक गुरु कहलाते हैं | हे पार्वती! प्रथम दो प्रकार के गुरुओं से यह गुरु उत्तम हैं | (166)
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गौरी शंकर की प्रतिमा का पूजन कर के ॐ नमः शिवाय पंचाक्षरी मन्त्र का जाप करके सारा दिन भजन कीर्तन क र के रात्रि जागरण करती हैं..
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अकारादि क्रमेणैव नकारादि यथा क्रमम्॥ इस पंचाक्षरी मंत्र से ही सम्पूर्ण वेद प्रकट हुआ और स्वयं को भी वेद में प्रकट कर दिया इस ‘ पञ्चाक्षरी विद्या ' ने।
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कामासुर को वर प्राप्त कामासुर गुरुचरणों में प्रणाम कर निर्जन अरण्य में चला गया और आचार्य द्वारा बताई विधि से पंचाक्षरी मन्त्र के पूर्वक शिवजी को प्रसन्न करने लगा।
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एक बार पंचाक्षरी गवई ने भीमसेन को गाते हुए सुनकर चनप्पा से कहा, ‘इस लड़के को सिखाना तुम्हारे बस की बात नहीं, इसे किसी बेहतर गुरु के पास भेजो।'
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जो लोग यहां दर्शन के लिए नहीं जा सकते हैं वह पंचाक्षरी मंत्र से शिव की पूजा करें और दूध व जल से उनका अभिषेक करें तो कर्कोटक कालसर्प दोष (
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-इसके बाद शिव को समर्पित केसर, चंदन या गंध को रुद्राक्ष पर लगाकर शिव पंचाक्षरी 'नम: शिवाय' या षडाक्षरी मंत्र 'ऊँ नम: शिवाय' का यथाशक्ति जप करते हुए पहन लें।