| 41. | कहीं-कहीं यह भी सुना जाता है कि यवनी और पंडितराज-दोनों ने ही डूबकर प्राण दे दिए।
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| 42. | उत्साह को आधार मानकर पंडितराज (17 वीं शती मध्य) आदि ने अन्य अनेक भेद भी किए हैं।
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| 43. | किन्तु पंडितराज का मानना है कि रमणीय वस्तु हमारे ज्ञान से काव्यानुभूति में आकर आह्लाद् की सृष्टि करते हैं।
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| 44. | इसके निर्माता सर्वतंत्र स्वतंत्र पंडितराज जगन्नाथ हैं जो नवाव शाहाबुद्दीन के आश्रित तथा आसफ खाँ के द्वारा सम्मानित राजकवि थे।
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| 45. | इसके निर्माता सर्वतंत्र स्वतंत्र पंडितराज जगन्नाथ हैं जो नवाव शाहाबुद्दीन के आश्रित तथा आसफ खाँ के द्वारा सम्मानित राजकवि थे।
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| 46. | -पंडितराज जगन्नाथ कुलीनता यही है और गुणों का संग्रह भी यही है कि सदा सज्जनों से सामने विनयपूर्वक सिर झुक जाए।
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| 47. | ये सुप्रसिद्ध खगोल विद सम्राट दीक्षित जगन्नाथ पंडितराज बृद्धावस्था में मथुरा में दशावतार गली की अपनी दक्षिणियों की हवेली में रहते थे ।
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| 48. | हिन्दी जगत में पंडितराज जगन्नाथ की उदग्र एवं प्रत्यग्र प्रतिभा तथा मीरा और जयदेव की मनोरम मधुरिमा इनकी साहित्य-सर्जना के सुरभित सद्गुण हैं।
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| 49. | इस प्रकार हम कह सकते हैं कि पंडितराज के अनुसार काव्य लक्षण “चमत्कारी आह्लाद् से पूर्ण रमणीय अर्थों के प्रतिपादक शब्द काव्य हैं।
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| 50. | 2. पंडितराज जगन्नाथ कहते हैं, ‘ रमणीयार्थ-प्रतिपादकः शब्दः काव्यम् ' यानि सुंदर अर्थ को प्रकट करने वाली रचना ही काव्य है।
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