किसी ने कहा अच्छी है, किसी को बिल्कुल पसंद नहीं आई.... आपका रीव्यू पढ़कर एक बैलेंस्ड नज़रिया मिला, देखूँगी ज़रूर पर उम्मीदों को परे हटाकर... एक अच्छा व पक्षपातरहित रीव्यू...
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वितरणात्मक न्याय की की परिकल्पना समाज में ‘ अधिकतम लोगों का अधिकतम सुख ' के उपयोगितावादी लक्ष्य को मूत्र्तरूप देने हेतु, सुख-संसाधनों के पक्षपातरहित बंटवारे के लक्ष्य को ध्यान में रखकर की जाती है.
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हमें विश्वास है कि पक्षपातरहित होकर यदि इसे पढ़ेंगे तो आप इस बात से अवश् य सहमत हो जाएँगे कि स्वामीजी एक महापुरुष थे, चाहे आपके धार्मिक विचार स्वामीजी के विचारों के अनुरूप हों या न हों ।
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दरअसल, वह समाचार माध्यमों में एक ऐसा दुर्भेद्य फ़िल्टर बन गया है जिससे निकलकर किसी भी सही, तथ्यपूर्ण, वस्तुनिष्ठ और पक्षपातरहित समाचार के लिए पाठकों / दर्शकों तक पहुंच पाना लगातार मुश्किल होता जा रहा है.
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सच्चे अर्थ में आजाद देश वही है जहां हर नागरिक को उसकी क्षमता और इच्छा के अनुसार अपनी उन्नति के समान अवसर मिलें, जहां अमीर-गरीब सबको सुलभ और पक्षपातरहित न्याय मिले, जहां समाज के कमजोर और पिछडे तबके का शोषण न हो।
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उन्होंने कहा कि पल्लव आलोचना के लिये अधिकांशतः अच्छी लेकिन उपेक्षित रचना को चुनते हैं और व्यक्तिगत संबंध के निर्वाह के नाम पर किसी को भी अनावश्यक रियायत नहीं देते हुये पक्षपातरहित दृष्टि से रचनाओं को देखते हैं, वास्तव में आलोचना यही है।
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४. आप् तों के आचार और सिद्धान्त से परीक्षा करना उसको कहते हैं कि जो सत्यवादी, सत्यकारी, सत्यमानी, पक्षपातरहित, सब के हितैषी, विद्वान्, सबके सुख के लिए प्रयत् न करें वे धार्मिक लोग आप् त कहाते हैं ।
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उदाहरण के तौर पर एक न्यायधीश (Judge) यदि पक्षपातरहित निर्णय लेता है तो वह अपने धर्म का पालन करता है, (यदि पक्षपात्पूर्ण निर्णय लेगा तो क्या वह उसका धर्म नहीं कहलायेगा? पक्षपातरहित या पक्षपातपूर्ण का उसके धर्म से क्या लेना देना?)
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उदाहरण के तौर पर एक न्यायधीश (Judge) यदि पक्षपातरहित निर्णय लेता है तो वह अपने धर्म का पालन करता है, (यदि पक्षपात्पूर्ण निर्णय लेगा तो क्या वह उसका धर्म नहीं कहलायेगा? पक्षपातरहित या पक्षपातपूर्ण का उसके धर्म से क्या लेना देना?)
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जो प्रेम से प्रसन्न होने वाले हैं, विषयी पुरुषों के लिए जिनकी प्राप्ति कठिन है, जो अपने भक्तों की समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं, जो पक्षपातरहित और सदा सुखपूर्वक सेवा करने योग्य हैं, उनका मैं निरंतर भजन करता हूँ॥ १ ० ॥