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परमतत्त्व उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
41.मरणतुल्य प्राणी की वाणी तब तक मन में लीन नहीं होती, जब तक मन प्राण में जीन नहीं होता, प्राण तेज में जीन नहीं होता और तेज परमतत्त्व में लीन नहीं होता।

42.यह ज्ञान वह ज्ञान है जिसमें संपूर्ण ब्रह्माण्ड समाया हुआ है ब्रह्माण्ड में जड़-चेतन तथा परमतत्त्व जो कुछ भी व्याप्त है उस सब की रहस्य का बोध केवल इसी तत्त्वज्ञान विधान में ही समाहित है.

43.योगेश्वर कहते हैं कि जो मान और मोह से सर्वथा रहित है, जिसने संगदोष जीत लिया है, जिसकी कामनाऍं निवृत्त हो गई हैं और जो द्वन्द्व से मुक्त है, वह पुरूष उस परमतत्त्व को प्राप्त होता है।

44.सभी इसके लिए तैयार हैं कि कभी कसौटी हो, क्योंकि सभी अभी उस परमतत्त्व की शोध में ही लगे हैं, जिसे पा लेने पर कसौटी की ज़रूरत नहीं रहती, बल्कि जो कसौटी की ही कसौटी हो जाती है।

45.गुरुगीताम्भसि स्नानं तत्त्वज्ञः कुरुते सदा॥ १ ५ ७ ॥ इस परमतत्त्व को जानने वाले ज्ञानीजन संसार रूपी कीचड़ के नाश के लिए गुरुगीता रूपी जल से सदा स्नान करते है॥ १ ५ ७ ॥ स एव च गुरुः साक्षात् सदा सद्ब्रह्मवित्तमः।

46.भक्ति और भाव, श्रध्धा और विश्वास ही गूढ़ और अद्रश्य परमतत्त्व को उजागर करती है और तब ईश्वर स्वयं भक्त के समीप आ पहुँचते हैं और मुक्ति का मार्ग बस, उसी के आगेहै परम आदरणीय महायोगी नित्यानंद जी के एक शिष्य मुक्तानंद जी जग प्रसिध्ध हुए हैं

47.जिन भगवान के नामों का संकीर्तन सारे पापों को सर्वथा नष्ट कर देता है और जिन भगवान के चरणों में आत्मसमर्पण, उनके चरणों में प्रणति सर्वदा के लिए सब प्रकार के दुखों को शांत कर देती है, उन्हीं परमतत्त्व स्वरूप श्री हरि को मैं नमस्कार करता हूं।

48.भक्ति और भाव, श्रध्धा और विश्वास ही गूढ़ और अद्रश्य परमतत्त्व को उजागर करती है और तब ईश्वर स्वयं भक्त के समीप आ पहुँचते हैं और मुक्ति का मार्ग बस, उसी के आगेहै परम आदरणीय महायोगी नित्यानंद जी के एक शिष्य मुक्तानंद जी जग प्रसिध्ध हुए हैं

49.यह मतभेद बहुत बड़ा और जन-दुःख निवारकों की शक्ति पूजक, शक्ति, तांत्रिक संज्ञा बना कर उनका अपनी श्रेणी से अलग कर दिया गया, तांत्रिक या शाक्त अपने आरंभ काल में परमतत्त्व की आराधना से शक्ति प्राप्त करने और उसके द्वारा सिद्धि प्राप्त करके जनता के शारीरिक एवं मानसिक दुःखों को दूर करते थे।

50.जब साधक मन को नियन्त्रित करके समस्त इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर लेता है तो वह परमतत्त्व में विलीन होकर निर्मल, शान्त स्वरूप का कल्याणकारी हो जाता है और वह श्रेष्ठ साधक व योगी कहलाता है और वह कैवल्य पद को प्राप्त कर परमात्म स्वरूप हो जाता है तथा ब्रह्म अनन्द की अनुभूति पाता है.

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