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परम श्रेष्ठ उदाहरण वाक्य

उदाहरण वाक्य
41.अपने स दृश्य देखता सबको, परम श्रेष्ठ योगी है वह होता. (३ २) अर्जुन हे मधुसूदन! समभाव योग है दीर्घ काल क्या स्थिर होगा? मन की चंचलता के कारण कैसे स्थिर स्थिति में होगा?

42.यह परम श्रेष्ठ शिष्य है, ऐसे ही शिष्य को होना चाहिए लेकिन आज भस्मासुर शिष्य ज्यादा है जो गुरू को राय देंगे, गुरू के समझ को मुर्खता कह उन्हें सिखायेंगे ये शिष्य क्या कभी गुरू सता को समझ पायेंगे।

43.सुखं वा यदि वा दुःखं स योगी परमो मतः ॥ ‘हे अर्जुन! जो योगी अपनी भाँति सम्पूर्ण भूतों में सम देखता है और सुख अथवा दुःख को भी सबमें सम देखता है, वह योगी परम श्रेष्ठ माना गया है ।'

44.भावार्थ:-उदार (परम श्रेष्ठ एवं महान्) सर्पराज शेषजी भी सेना का बोझ नहीं सह सकते, वे बार-बार मोहित हो जाते (घबड़ा जाते) हैं और पुनः-पुनः कच्छप की कठोर पीठ को दाँतों से पकड़ते हैं।

45.ईश्वर के हर रूप ने हमें मोह से बचने का उपदेश दिया, यह जग का पसारा मोह माया मिथ्या हैं...लेकिन मानव मन की क्या कहिये! उसे तो इस मोह माया में उलझे रहना ही परम श्रेष्ठ कर्म लगता हैं ।

46.इसके बाद भगवान, अर्जुन को सम्बोधित कर कहते हैं कि “ जो योगी की भाँति अपनी आत्मदृष्टि से सुख अथवा दुख में सर्वत्र समत्व के ही दर्शन करता है, सभी को सम भाव से देखता है, वह परम श्रेष्ठ योगी है ” ।

47.विचार हु आ कि सभी दर्शनशास्त्रों के पंडितों के भी आचार्य परम श्रेष्ठ तपस्वी तत्वज्ञान-प्राप्त श्री गुरुदेव जिनकी कृपा के बल पर अभ्युदय और भगवत्साक्षात्कार करना है, जिनके श्री चरणों में जीवन समर्पित है, उनके श्री चरणोण् को छोड़कर कहाँ जाना है?

48.सुप्रभात । वो जिंदगी से कभी जाती नही.... ईश्वर के हर रूप ने हमें मोह से बचने का उपदेश दिया,यह जग का पसारा मोह माया मिथ्या हैं...लेकिन मानव मन की क्या कहिये! उसे तो इस मोह माया में उलझे रहना ही परम श्रेष्ठ कर्म लगता हैं ।

49.ब्रह्यचर्य रहकर चतुर्मास का पालन करना, पयमान को जीवन का आधार समझना, नित्य एक हजार गायत्री मंत्र का जाप करना, योग धर्म में पथिक होकर भी सांसारिक कर्तव्यों से जूझना और अपनी सुशिक्षा तथा सच्चरित्र के द्वारा लोगों में धर्मानुराग उत्पन्न कर परमार्थ में रत रहना वे परम श्रेष्ठ समझते थे।

50.दुर्दम, अपराजेय योद्धा, परम श्रेष्ठ धनुर्धर! लेकिन जीवन भर विडम्बनायें झेलता रहा ।कुन्ती ने जानते हुये भी कुछ न किया, बल्कि उसने भी अपने विहित पुत्रों की सुरक्षा के लिये उससे उस मातृत्व की कीमत माँग ली कृष्ण के कहने पर, जिसने उसे सदा वंचित रख कर जीवन अभिशप्त बना दिया था ।

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