इससे पहले की हम नवोदित आवाज़ों से आपका परिचय करवाना शुरु करें, यह बेहद ज़रूरी होगा कि फ़िल्म संगीत के सभी पीढ़ियों के पार्श्वगायकों पर जल्दी जल्दी एक नज़र दौड़ा लिया जाये, और फिर उसके बाद इत्मीनान से आज की पीढ़ी की विस्तार से चर्चा की जाये।
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मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ मेरा मानना हैं कि समय के साथ या यूँ कहे कि नई पीढ़ी के साथ बदलना ही समझदारी हैं अपने बच्चो कि ख़ुशी में खुश होना साथ ही उन्हें अपने संस्कारो का परिचय करवाना दोनों का सामूहिक रूप ही सही विकल्प हैं
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सुजॉय-लावण्या जी, एक पिता के रूप में आपनें अपने जीवन के अलग अलग पड़ावों में अपने पिताजी को कैसा कैसा पाया? यानी कि बचपन में, यौवन में, आपने उन्हें कैसा महसूस किया? क्या एक आदर्श पिता के रूप में आप उनका परिचय करवाना चाहेंगी?
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यह मेरी पहली हिन्दी की पोस्ट है| मैं आपको विकीसॉर्स से परिचय करवाना चाहता हूँ | उसपर प्रेमचंद की अनेक कहानियाँ है जो आप इस कडी पे पढ सकते हैं | आइये आपके मनोरंजन के लिये प्रेमचंद की बडे भाईसाहब कहानी के चंद परिच्छेद प्रस्तुत करता हूँ | इसमे एक बडा भाई अपने छोटे भाई को समझा रहा है कि उसकी पढाई कितनी कठिन है और इसलिये छोटे को भी अपनी पढाई मे अभी से ही ज्यादा ध्यान देना चाहिये |
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ज़रा सोचिये, आप किसी बड़े शहर के सबसे पुराने और काफ़ी ख्यात ब्लॉगर हैं, उसी शहर में कोई ब्लॉगर सम्मेलन होता है जिसे तथाकथित रूप से “राष्ट्रीय संगोष्ठी” का नाम दिया जाता है, लेकिन फ़िर भी न तो आपको उस सम्मेलन हेतु कोई निमंत्रण पत्र भेजा जाता है, उलटे किसी के व्यक्तिगत बुलावे पर आप गलती से उस सम्मेलन में पहुँच भी जायें तो आपका सभी से परिचय करवाना तो दूर, उलटा एक निश्चित दूरी बनाये रखी जाये, तो इस व्यवहार को आप क्या कहेंगे…
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प्रदीप सर, सादर प्रणाम महानता तो आप की है सर की आप मुझे सदेव बल देते रहते है और हौसला देते रहते है किन्तु एक नाराजगी है आपसे सर की आप केवल मुझे अच्छा बता के चले जाते है जो की जायज नहीं है गुण जो होंगे वो तो अपनी जगह पर अच्छे ही है किन्तु अवगुणों से परिचय करवाना आप जैसे अनुभवी लोगों का ना सिर्फ कार्य है बल्कि धर्म भी है सो आगे से मुझे मार्गदर्शित भी करतें रहे आपका प्रिय चेला