माननीय उच्चतम न्यायालय ने उपर्युक्त न्यायदृष्टान्तों में यह कहा है कि यदि टेªप सम्बन्धी मामला में घटनाक्रम, मानवीय आचरण एवं अन्य परिस्थितियों को देखते हुये तथ्यों के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि अभियुक्त ने वैध परितोषण से भिन्न राशि प्राप्त की और इस सम्बन्ध में उसने कोई समुचित स्पष्टीकरण नहीं दिया है तो उससे बरामद हुई राशि के आधार पर उसके विरूद्ध यह उपधारणा धारित की जा सकती है कि उसने ऐसी राशि अवैध परितोषण के रूप में प्राप्त की।
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इस न्यायालय के समक्ष निर्धारण हेतु प्रश्न यह हैं कि क्या प्रकरण के अभियुक्त बाबूसिंह ने हलका पटवारी कालेरी के लोक सेवक के पद पर रहते हुये अभियोगी जवानाराम एवं मोहबताराम से उनके खेत का म्यूटेशन भरने एवं खसरा संख्या 465 एवं 468 की जमाबन्दी की नकले देने की एवज में हेतु या इनाम के रूप में वैध पारिश्रमिक से भिन्न 1500 /-रूपये परितोषण की मांग कर दिनांक 21.4.2002 को उनसे यह राशि भ्रष्ट एवं अवैध तरीका से प्राप्त कर आपराधिक अवचार किया?
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इस प्रकार से अभियुक्त हुकमसिंह ने उपर्युक्त विवादित राशि ओढ़ावनी की होने के सम्बन्ध में जो स्पष्टीकरण दिया है, वह स्पष्टीकरण समुचित प्रमाण (साक्ष्य) से समर्थित नहीं होने से उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता और उसका यह स्पष्टीकरण संभाव्य साक्ष्य की परिधि में भी नहीं आता है, इस कारण उसका स्पष्टीकरण व उसकी ओर से प्रस्तुत साक्ष्य के आधार पर यहां यह नहीं कहा जा सकता कि यह विवादित राशि परितोषण से भिन्न एक राव के रूप में रीति रिवाज अनुसार दी गई ओढ़ावनी के रूप में हो।
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यहां बचाव-पक्ष की ओर से प्रस्तुत उपर्युक्त न्यायदृष्टान्तों में प्रतिपादित सिद्धान्त के आधार पर यही कहा जा सकता है कि इस प्रकार के मामला में अभियुक्त को अपना स्पष्टीकरण / बचाव युक्तियुक्त सन्देह से परे सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है लेकिन माननीय उच्चतम न्यायालय ने धनवन्तराय बलवन्तराय देसाई विरूद्ध महाराष्ट्र राज्य-ए. आई. आर1964 एस. सी. 575 (चार सदस्य पीठ) वाले मामला में यह कहा है कि अभियुक्त को परितोषण के रूप में अभिलेख पर आई अभियोजन साक्ष्य का खण्डन समुचित प्रमाण से करना होता है, न कि सिर्फ संभाव्य साक्ष्य के आधार पर।
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" आया अभियुक्त ने दिनांक 15-12-2003 को जिला सैनिक कल्याण अधिकारी कार्यालय, पाली में कनिष्ठ लिपिक के पद पर लोकसेवक की हैसियत से पदस्थापित रहते हुये परिवादी श्रवणसिंह से उसकी माता श्रीमती भॅवरकॅवर की सहायता पेन्शन का चैक बनवाने के लिये हेतु या इनाम के रूप में वैध पारिश्रमिक से भिन्न 1000/-रूपये परितोषण की मांग की और इस प्रयोजनार्थ 200/-रूपये परिवादी श्रवणसिंह से प्राप्त किये एवं दिनांक 9-1-2004 को शेष आठ सौ रूपये की मांग करते हुये दिनांक 12-2-2004 को परिवादी से आठ सौ रूपये रिश्वत राशि मांग कर प्राप्त कर आपराधिक दुराचरण किया?